मदरसों के लिए ड्रेस कोड पर विवाद के बाद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री मोहसिन रजा को लेकर केंद्र सरकार तक को दखल देना पड़ा है. वही योगी सरकार की कैबिनेट में मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने मामले को सँभालते हुए कहा कि मदरसों में किसी भी तरह का ड्रेस कोड लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. जब ड्रेस कोड को लेकर कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं तो इस पर बजट का भी कोई सवाल नहीं उठता है. उन्होंने कहा, ‘किसी के खाने पर और कपड़े पहनने पर कोई पाबंदी नहीं होती है. ड्रेस कोड यदि मदरसे लागू करें तो यह उनकी इच्छा है.’ 
लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा ‘राज्यमंत्री ने जो भी बयान दिया हो, उसका हमारे विभाग से कोई सरोकार नहीं है. हम इस तरह का कोई प्रस्ताव लागू करने नहीं जा रहे हैं.’ मदरसों में ड्रेस कोड तय करने को लेकर मौलवी सूफियां निजामी ने कहा, ‘देश में चल रहे मदरसों और कॉलेज के लिए ड्रेस कोड संस्थान की कमिटी तय करती है न कि सरकार. तो इस तरह का भेदभाव मदरसों के साथ क्यों?’ वहीं मदरसा दारुल उलूम फिरंगी महल ने भी मोहसिन रजा के बयान का विरोध किया है. मौलवी मोहम्मद हारून ने भी कहा, ‘मदरसों के लिए क्या अच्छा है क्या नहीं यह हम पर छोड़ देना चाहिए, वैसे भी बमुश्किल 1-2 फीसदी बच्चे ही यहां पढ़ने आते हैं. सरकार को इसके लिए चिंतित नहीं होना चाहिए.’
दरअसल विवाद तब बढ़ा जब यूपी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहसिन रजा ने मदरसों में कॉमन ड्रेस कोड को लेकर मंगलवार को कहा था कि मदरसों के बच्चों को भी मुख्यधारा से जोड़ना है, इसीलिए एनसीईआरटी की किताबें लागू की गईं. धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अब मदरसे के बच्चे सामाजिक शिक्षा भी हासिल करेंगे. उनका कहना है कि ड्रेस कोड से बच्चों के अंदर भी कॉन्फिडेंस आएगा और वे खुद को बाकी स्टूडेंट्स जैसा ही समझेंगे और बराबर महसूस करेंगे. मामला तूल पकड़ता देख राज्य सरकार ने तुरंत डैमेज कंट्रोल किया .
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