12 जनवरी को चार जजों द्वारा प्रेस कांफ्रेस को लेकर हो रही आलोचना पर जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि जब आप पब्लिक सर्वेंट होते हैं तो आप लोगों की आलोचना से बच नहीं सकते। 12 जनवरी को हम चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया। न्यायपालिका से जुड़े मसले पर पब्लिक के समक्ष जाने में मुझे कोई पछतावा नहीं है। मैं सचमुच आहत था और मुझे लगा था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस करना आखिरी विकल्प था। इस सवाल पर कि क्या जज साक्षात्कार दे सकते हैं जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि अपने फैसले को लेकर साक्षात्कार नहीं दे सकते। लेकिन दूसरे मसले पर तो जरूर बात कर सकते हैं।
प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट केमामले में जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि मैं अब तक यह समझ नहीं पाया हूं कि आखिर मेरी पीठ द्वारा आदेश पारित करने में क्या परेशानी थी। यह चलन रहा है कि जब चीफ जस्टिस अगर संविधान पीठ में बैठते हैं तो दूसरे वरिष्ठतम जज के समक्ष मेंसनिंग होती है। मैं अब भी मानता हूं कि मैं अपने अधिकार के दायरे में रहते हुए पांच वरिष्ठतम जजों वाली संविधान पीठ के गठन का आदेश दिया था।
सभी जनहित याचिकाओं पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा सुनने का निर्णय लेने के सवाल पर जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा अगर चीफ जस्टिस ऐसा चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने दिया जाए। चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। अगर उन्हें सभी कामों करने की ऊर्जा हैं तो उन्हें करने दिया जाए।
इस सवाल पर कि अगर जस्टिस रंजन गोगई को अगला भारत का प्रधान न्यायाधीश न बनाया तो क्या होगा, जवाब में जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि मैं भविष्यवेता नहीं हूं। आशा करता हूं कि ऐसा नहीं होगा और अगर ऐसा हुआ तो यह साबित होगा कि हमने प्रेस कांफ्रेस में जो कहा था कि वह सही था।
जस्टिस चेलमेश्वर ने यह भी कहा कि जज की अहमियत इस पर निर्भर नहीं होती कि उनके पास कौन से मामले हैं। मैं इस बात की चिंता नहीं करता कि मेरे पास क्या केस है। छोटी चीजों को भी बडे तरीके से अंजाम दिया जा सकता है। महान चीजों को भी छोटे तरीके से अंजाम दिया जा सकता है।
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद वह सरकार का कोई पद नहीं लेंगे। इस सवाल पर कि इन दिनों सभी संस्थान के समक्ष कॉमन परेशानी है, जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा है कि भारत के राष्ट्रपिता ने कहा था सच बोलना चाहिए। सच नहीं बोलना ही वह परेशानी है जिससे सभी संस्थान जूझ रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका में ऑडिट जरूरी है। लोकतंत्र में समय-समय पर ऑडिट जरूरी है।
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