आज तक हम सभी ने यही सुना हैं कि भगवान शिव की अर्धांगिनी केवल माता पार्वती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता षोडशी माहेश्वरी को भी भगवान शिव की अर्धांगिनी माना गया हैं. कहा जाता हैं कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि आपके द्वारा प्रकाशित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएंगे, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति तो इससे नहीं होगी.
इस दौरान पार्वती ने कहा कि निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई उपाय बताइए. तब भगवान शिव ने षोडशी श्री विद्या-साधना-प्रणाली को प्रकट किया. यही वजह हैं कि आज भी सभी शंकर पीठों में भगवती षोडशी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी की श्रीयंत्र के रूप में आराधना चली आ रही है.
माना गया हैं कि प्रशांत हिरण्य गर्भ ही शिव हैं और उन्हीं की शक्ति षोडशी है. तंत्र शास्त्रों में षोडशी देवी को पंचवक्त्र अर्थात पांच मुखों वाली बताया गया है. महाविद्याओं में इनको चौथा स्थान दिया गया हैं. इन्हें ललिता, राज राजेश्वरी, महात्रिपुर सुंदरी, बाला पञ्चदशी जैसे नामों से पहचाना जाता हैं.
षोडशी देवी के दस हाथ हैं जिनमे अभय, टंक, शूल, वज्र, पाश, खंग, अंकुश, घंटा, नाग और अग्नि हैं. माना गया हैं कि इन सभी हाथों में षोडश कलाएं पूर्ण रूप से विकसित हैं जिसके चलते उन्हें षोडशी देवी कहा गया हैं.