मालदीव की एक अदालत ने वहां के पूर्व राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गयूम और वहां के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को निष्पक्ष सुनवाई के बगैर जेल की लंबी अवधि की सजा सुना दी है. जिस पर भारत ने अफ़सोस जताया है. और भारत के विदेश मंत्रालय ने इस घटना पर कहा कि इस घटनाक्रम से कानून का शासन कायम रखने की मालदीव की सरकार की प्रतिबद्धता पर संदेह खड़ा होता है.
विदेश मंत्रालय ने आगे कहा इसके साथ ही वहां सितंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होना लाजमी है. मालदीव प्राप्त हुई जानकारी के मुताबिक अदालत ने 80 वर्षीय गयूम और चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद को न्याय में बाधा डालने का दोषी पाया था और उन दोनों को एक वर्ष सात महीने तथा छह दिन की जेल की सजा सुना दी गई.
इस मसले पर भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एक बयान जारी किया है जिसमें कहा है कि मालदीव की सरकार के लिए भारत अपनी सलाह दोहराता है कि वह गयूम और चीफ जस्टिस जैसे राजनीतिक कैदियों को तुंरत रिहा करे और निवार्चन तथा राजनीतिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को फिर से काबिज करे. भारत ने मालदीव को पहले भी सुप्रीम कोर्ट तथा संसद को स्वतंत्र रूप से काम करने की हिदायत दी थी.
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