क्या आप जानते हैं, इस पवित्र मंदिर के प्रसाद में मिलता है कुछ ऐसा जिससे, मिलती है बांझपन से मुक्ति…

नई दिल्ली। हमारे देश में तरह-तरह की मान्यताएं सदियों से चली आ रही है। इनमे से कुछ तो बाहरी दुनिया के लिए बेहद अजीब है, लेकिन इन्हीं अजीब मान्यताओं को हमारे देश में पूजा जाता है। इन्हें पूजना सही है या गलत ये तो श्रद्धालु की श्रद्धा पर निर्भर करता है। क्योंकि जो चीज सदियों से चली आ रही है उसको रोक पाना आसान नहीं होता और धर्म के मामले में तो इसे नामुमकिन ही समझ लीजिए।

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क्या आप जानते हैं, इस पवित्र मंदिर के प्रसाद में मिलता है कुछ ऐसा जिससे, मिलती है बांझपन से मुक्ति...

तो चलिए आज आपको एक ऐसे पवित्र हिन्दू मंदिर के बारे में बताते है जहां देवी की योनी की पूजा की जाती है और श्रद्धालु देवी को साल में एक बार होने वाले पीरियड पर बड़ा सा पर्व भी मनाते हैं। ये मंदिर असम में है। यहां 22 जून से अंबुबाची पर्व शुरू हो चुका है जो 25 जून तक चलेगा। इस पर्व को शानदार तरीके से मनाने के लिए असम सरकार ने ढेरों इंतजाम कर रखे हैं। शायद आप ये बात पहली बार सुन रहे होंगे, लेकिन इस समय मंदिर में भक्तों को देवी के ‘पीरियड के खून’ से रंगा हुआ कपड़ा प्रसाद में दिया जाता है। इस मंदिर का नाम कामाख्या मंदिर है।

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कथा के अनुसार

 कामाख्या को ‘सती’ (जो कि भगवान शिव की पत्नी थीं) का एक अवतार माना जाता है। देवी सती की मृत्यु के बाद, शिव ने तांडव नृत्य शुरू कर दिया था। उन्हें रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र छोड़ा था। इस चक्र ने देवी सती के शरीर को 51 हिस्सों में काट दिया था। ये 51 हिस्से धरती पर जहां-जहां गिरे, उन्हें ‘शक्तिपीठ’ का नाम दिया गया। इन्हीं में से एक हिस्सा वहां गिरा, जहां पर इस वक्त कामाख्या मंदिर है।

देवी सती का गर्भाशय जिस जगह पर गिरा था, उसका पता तब तक नहीं चल पाया था जब तक कामदेव ने उसे ढूंढा नहीं था। कामदेव ने भगवान शिव के शाप से मुक्त होने के लिए इसे ढूंढा। कामदेव का शरीर तहस-नहस हो चुका था, लेकिन इसे ढूंढ कर उसकी पूजा की और अपना शरीर वापस पा लिया। इसलिए इस मंदिर और देवी को कामाख्या के नाम से जाना जाता है।

कब हुआ कामाख्या मंदिर का निर्माण :- मंदिर 1565 में नर-नारायण ने बनवाया था। अपने बनने के साथ ही ये मंदिर अंबुबाची मेले से जुड़ गया था। मंदिर के गर्भगृह (मेन हिस्सा) में देवी विराजमन है।

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क्या है अंबुबाची मेला

अंबुबाची का पर्व ‘अहार’ (जिसे आषाढ़ कहते हैं) के महीने में आता है। आषाढ़ जून-जुलाई में आता है। जबसे कामाख्या मंदिर बना है, हर साल ये पर्व मनाया जाता है। महीने के आखिरी चार दिनों में ये मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि ये वो चार दिन वो होते हैं, जब कामाख्या देवी को पीरियड आते हैं। मंदिर के दरवाज़े बंद रहते हैं। इस दौरान मंदिर के अंदर बने हुए एक छोटे से तालाब का पानी लाल रंग में बदल जाता है।

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प्रसाद के तौर पर देवी का निकलने वाला पानी या फिर अंगवस्त्र (लाल कपड़ा, जिससे देवी की योनी को ढका जाता है) मिलता है। मान्यताओं के अनुसार इस प्रसाद में औरतों में होने वाली पीरियड से समस्याओं को ठीक करने और उन्हें ‘बांझपन’ से मुक्त करने की ताकत होती है।

 
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