असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने कहा कि प्रतिबंधित उल्फा (इंडिपेंडेंट) संगठन के साथ शांति वार्ता तभी आगे बढ़ सकती है जब वह संप्रभुता के अलावा अन्य मुद्दों और शिकायतों पर चर्चा के लिए तैयार हो। मुख्यमंत्री ने एक साक्षात्कार में समाचार एजेंसी पीटीआइ को बताया उल्फा (आई) प्रमुख परेश बरुआ जोर देकर कहते हैं कि वह संप्रभुता से परे किसी भी बात पर चर्चा नहीं करेंगे, लेकिन मैंने संप्रभुता की रक्षा करने की शपथ ली है। ये दोनों अपूरणीय हैं। ऐसे बहुत से नेक इरादे वाले लोग हैं, जो इस मुद्दे पर उल्फा प्रमुख के साथ काम कर रहे हैं, ताकि उन्हें संप्रभुता के अलावा कुछ महत्वपूर्ण चर्चा करने के लिए मना सकें। देखते हैं क्या होता है।
सरमा ने आगे कहा कि यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करें अपनी भूमि का एक भी इंच भी उन्हें न सौपें । मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके लिए भी एक मजबूरी है, इसलिए एक निश्चित बिंदु पर पहुंचने की जरूरत है, जो संबंधित दोनों के मुद्दों को संबोधित कर सके। समस्या का कोई तत्काल हल नहीं है, लेकिन यह समय के साथ विकसित होगी। मैं आशान्वित हूं। हालांकि साथ ही इन मुद्दों पर कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि वार्ता ने धीमी प्रगति की है। माहौल सकारात्मक है, लेकिन साथ ही कहा कि जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ती है, कभी-कभी यह पूरी तरह से उल्टा पड़ जाता है। तो कोई इसे लेकर निश्चित नहीं हो सकता (वार्ता के माध्यम से समाधान) लेकिन हम आशा और प्रार्थना कर सकते हैं।
सरमा ने 10 मई को शपथ लेने के बाद उल्फा (आई) से शांति वार्ता के लिए आगे आने और राज्य में तीन दशक से अधिक पुरानी विद्रोह की समस्या को हल करने की अपील की थी। नेशनल रजिस्टर फॉर सीटिजन (एनआरसी) की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे जाने पर सरमा ने कहा कि इसके राज्य समन्वयक ने पुन: सत्यापन और दस्तावेज पर फिर से विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। अब कोर्ट पर निर्भर है कि वह याचिका पर सुनवाई करे। हो सकता है कि कोरोना के कारण इसमें देरी हुई हो। याचिका दायर की गई है, तो निश्चित रूप से सुनवाई होगी।
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