साल 2014 में मोदी सरकार बनने के कुछ समय बाद ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक उन्नत मोटर वाहन कानून की बात कही थी. उनका कहना था कि यातायात व्यवस्था की खामियों, नियमों में सुधार व भारतीय सड़कों पर होने वाली मौतों को रोकने के लिए देश को नए मोटर वाहन कानून की आवश्यकता है. मोदी सरकार को बने तीन साल से अधिक समय हो गया है, परंतु भारत को अभी भी उस कानून का इंतजार है. ऐसा लगता है कि नए कानून की उम्मीद को पुनः संसद के अगले सत्र तक धकेल दिया गया है.Infosys में सिक्का के इस्तीफे के बाद मचा हडकंप, हो सकती है ‘आधार’ के पूर्व दिग्गज की वापसी
केंद्र सरकार ने मोटर वाहन संशोधन विधेयक 2016 को 3 अगस्त 2016 को मंजूरी प्रदान की थी. इसमे यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाने का प्रस्ताव था. गडकरी ने इसे सड़कों को सुरक्षित बनाने व निर्दोष यात्रियों के जीवन की रक्षा करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया था. 9 अगस्त 2016 को नितिन गडकरी ने इस विधेयक को लोक सभा में प्रस्तुत किया. गडकरी ने लोक सभा सांसदों से आग्रह किया की ‘यह विधेयक एक साल से विचाराधीन है. 18 राज्यों के परिवहन मंत्रियों ने इस विधेयक पर अपने विचार दिए हैं. हमने उनके उन सब सुझावों को स्वीकार कर लिया है जो सार्वजनिक हित में है.’
परंतु नितिन गडकरी की एक न चली और मोटर वाहन संशोधन विधेयक 2016 को संसदीय स्थायी समिति की विवेचना के लिए भेज दिया गया. संसदीय स्थायी समिति के द्वारा दिए गए 16 संशोधनों को स्वीकार कर और 3 सुझावों को अस्वीकार कर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पुनः 31 मार्च 2017 को विधेयक को अपनी मंज़ूरी दे दी. बजट सत्र 2017 के अंतर्गत 10 अप्रैल 2017 को ध्वनि मत से, विपक्ष के कुछ मुद्दों पर विरोध के बावजूद मोटर यान संशोधन विधेयक 2016 को लोक सभा से मंज़ूरी मिल गई.
विधेयक के मुख्य बिंदु:
• आधार आधारित प्लेटफॉर्म के साथ ड्राइविंग लाइसेंस और वाहन पंजीकरण को जोड़ना ताकि लाइसेंस की डी-डुप्लेक्शन और चोरी किए गए वाहनों के पंजीकरण को रोका जा सके.
• ‘आपातकालीन वाहनों को रास्ता नहीं प्रदान करने’ पर 10 हजार रुपये का जुर्माना.
• थर्ड पार्टी बीमा के लिए देयता पर कैप को हटाना.
• ड्राइविंग लाइसेंस के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर और ‘वाहन’ और ‘सारथी’ प्लेटफॉर्म के माध्यम से वाहन पंजीकरण के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने का प्रस्ताव, ताकि पंजीकरण और लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को सुचारू बनाया जा सके.
• वाहनों के डिजाइन में ऐसे परिवर्तन का सुझाव ताकि उन्हें दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त बनाया जा सके.
• मोटर वाहन दुर्घटना कोष का निर्माण, जो निश्चित प्रकार के दुर्घटनाओं के लिए भारत के सभी सड़क उपयोगकर्ताओं को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा.
• राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का निर्माण. यह बोर्ड, सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन के सभी पहलुओं पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह प्रदान करेगा.
• ठेकेदार, सलाहकार और नागरिक एजेंसियों पर दोषपूर्ण डिजाइन, निर्माण या सड़कों के खराब रखरखाव के कारण हुई दुर्घटनाओं की जवाबदेही. दोषी पाए गए लोगों पर 1 लाख रुपये तक दंड.
मोटर यान संशोधन विधेयक 2016 के तहत विभिन्न दंडों में प्रस्तावित संशोधन
सरकार को क्यों रोक रहा है विपक्ष?
सरकार मोटर वाहन क़ानून में क्रांतिकारी सुधार कर लोगों की जान बचाना चाहती है. इस विधेयक का मूल उद्देश्य मानव जीवन को बचाने है. भारत में हर साल लगभग 5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसके कारण करीब 1.5 लाख लोग मर जाते है. ऐसा लगता है की एक क्रांतिकारी क़ानून बनाने का श्रेय मोदी सरकार को न मिल जाए, इस डर से, विपक्षी राजनीतिक दल इस विधेयक को रोकने में लगे हैं.
कहां फंसा है मोटर यान विधेयक?
केंद्र सरकार ने मोटर यान संशोधन विधेयक 2016 को राज्य सभा में पिछले संसद सत्र (बजट सत्र 2017) में सूचीबद्ध भी कर दिया, लेकिन वह विपक्षी सांसदों की राजनीति के फलस्वरूप, विचार के लिए नहीं उठाया जा सका. 11 अप्रैल 2017 को राज्य सभा में इस विधेयक पर चर्चा होनी थी, लेकिन विपक्षी सांसदों ने सुझाव दिया की अब शाम हो चुकी है तथा इस विधेयक पर चर्चा कल कराई जाए. विपक्षी सांसदों ने आश्वस्त कराया की अगले दिन इस विधेयक पर अवश्य चर्चा करेंगें. लेकिन 12 अप्रैल 2017 को सदन की कार्यवाही भोजन अवकाश से पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. कई राजनीतिक विश्लेषक मानते है की विपक्षी सांसदों ने जानबूझकर 11 अप्रैल को चर्चा नहीं होने दी, क्योंकि उन्हे पता था की संसद के आखरी दिन की कार्यवाही प्राय: भोजन अवकाश से पहले ही समाप्त हो जाती है.
अब हम मानसून सत्र 2017 की बात करते हैं. जुलाई के आखिरी सप्ताह में राज्य सभा के उप-सभापति पी जे कुरियन ने सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई. बैठक का उद्देश्य था कि विधेयक पर आम सहमति बन सके. सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से विधेयक के प्रति अपनी आपत्तियों को लिखित में उप-सभापति पी जे कुरियन को देने के लिए कहा गया. लेकिन केवल 3 सांसदों ने अपने सुझाव दिए. बैठक में विपक्षी राजनीतिक दलों ने मुख्यता विधेयक के द्वारा राज्यों के अधिकारों पर चोट की बात कही, जिसके उत्तर में नितिन गडकरी ने उन सभी खंडों को हटने की पेशकश की जो विपक्षी दलों के अनुसार संघीय ढांचे के विरुद्ध है.
विपक्षी राजनीतिक दलों ने यह भी तर्क दिया की इस सत्र में समय के अभाव के कारण विधेयक को अधिक विचार-विमर्श के लिए राज्य सभा की सेलेक्ट कमिटी को भेज देना चाहिए. फलस्वरूप, 8 अगस्त को राज्य सभा की 24 सदस्यीय सेलेक्ट कमिटी को विधेयक भेज भी दिया गया. कमिटी को अपनी रिपोर्ट अगले सत्र के प्रथम दिन से पहले राज्य सभा को सौंपनी होगी.
सब की निगाहें अब संसद के शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं. ऐसा उन्नत विधेयक जो भारत में सड़क परिवहन के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है, जिसके कारण सड़कों पर होने वाली मौतों में भारी गिरावट हो सकती है, वह संसद के नियमों, संसदीय कार्यप्रणाली और विपक्षी सांसदों की राजनीति के कारण फंसा पढ़ा है. क्या इस विधेयक को पारित करने का कोई रास्ता बनेगा या नही? यातायात व्यवस्था की दोषनिवृत्ति, नियमों में सुधार व भारतीय सड़कों पर होने वाली मौतों को रोकने के लिए उन्नत मोटर वाहन क़ानून कभी हमें मिलेगा या नहीं? यह देखने का विषय होगा.