टोल बूथों पर वाहनों के रुकने से हर साल अर्थव्यवस्था को सवा लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यही वजह है कि मोदी सरकार पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन प्रणाली को सुदृढ़ और सुगम बनाने का प्रयास कर रही है। लेकिन व्यवस्था की खामियों और ट्रांसपोर्टरों के असहयोग के कारण इस प्रक्रिया में विलंब हो रहा है। इससे आम वाहन चालकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इस नियम के लागू होते ही आपको टोल प्लाज़ा पर रुक कर टोल टैक्स कैश में नहीं देना होगा।वहीँ यूपी में इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन प्रणाली की शुरुआत बहुत जल्द हो सकती है। यूपी के राजमार्गो के टोल प्लाजा पर रोडवेज बसें जल्द ही फर्राटा भरते हुए निकलेंगी। आपको बता दें कि बसों में लगा फास्ट टैग आरएफआइडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन) कार्ड चलती बस से ही टोल टैक्स का भुगतान कर देगा जिससे बस यात्रियों का समय और परिवहन निगम का ईंधन भी बचेगा। स्टेट बैंक और एक्सिस बैंक ने यह कार्ड बनाने शुरू कर दिए हैं।
आपको बता दें कि कुछ वर्ष पहले आइआइएम- कोलकाता ने देश भर के टोल प्लाजा पर बर्बाद होने वाले समय को लेकर एक अध्ययन किया था। इसके अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गो पर स्थित टोल प्लाजा पर वाहनों का काफी समय व ईंधन बर्बाद होता है। इससे वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी के अलावा माल के परिवहन में भी विलंब होता है। इसके कारण कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को सवा लाख करोड़ के सालाना नुकसान होता है।
इस मसले पर पिछले साल नीति आयोग ने भी चिंता जताई थी। प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत एक प्रजेंटेशन में उसने कहा था कि भारतीय टोल प्लाजा और चेक प्वाइंट्स पर ट्रकों को औसतन 70 मिनट की रुकावट ङोलनी पड़ती है। जबकि विकसित देशों में यह समय पांच मिनट से ज्यादा नहीं है। यही वजह है कि जहां विकसित देशों में एक ट्रक रोजाना औसतन 700-800 किलोमीटर की दूरी तय करता है, वहीं भारत में ट्रक औसतन 300 किलोमीटर की दूरी ही कवर कर पाते हैं।
यह अलग बात है कि सरकार ने पूरी दुनिया में टोल व्यवस्था का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया है। सरकार का कहना है कि समस्या टोल में नहीं, बल्कि उसे वसूलने के तरीके में है। इसलिए इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग के जरिये तरीके को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है।