भारत सरकार में केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा की पहचान एक साइलेंट परफॉर्मर और ईमानदार छवि की रही है. जमीनी तौर पर काम करने वाले मनोज सिन्हा की इन्ही खासियतों ने उन्हें यूपी सीएम पद की रेस में सबसे आगे रखा है.पूर्वांचल के जिले गाजीपुर से निकलकर मनोज सिन्हा ने वाराणसी के आईआईटी बीएचयू में पढ़ाई पूरी की.बता दें कि तीन बार लोकसभा के सांसद और रेल राज्यमंत्री बने. वहीं काम के मामले में मनोज सिन्हा की अलग पहचान है.
भूमिहार समाज से आते हैं मनोज सिन्हा
1 जुलाई 1959 को गाजीपुर के मोहनपुरा गांव में जन्मे मनोज सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं जो पहले जमींदार होते थे. मनोज सिन्हा की छवि पढ़े लिखे और सौम्य व्यवहार वाले नेता की है. खेती-किसानी के बैकग्राउंड से आने वाले मनोज सिन्हा विकास के लिए पिछड़े गांवों पर खास फोकस रखते हैं.
इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी पास होने के बाद मनोज सिन्हा ने बीएचयू से बीटेक की पढ़ाई की. यहां राजनीति में उनका दखल कुछ और बढ़ा, और 1982 में वो बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए.
पिता से मिली राजनैतिक विरासत
मनोज सिन्हा को राजनीति अपने पिता से विरासत में मिली. उनके पिता स्कूल में प्रिंसिपल थे, लेकिन समाज सेवा और राजनीति में सक्रिय रहते थे.वहीं पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की बजाय राजनीति में आ गए. पढ़ाई के दौरान मनोज सिन्हा का परिवार वाराणसी आ गया था, इसलिए वाराणसी से भी उनका गहरा लगाव है.
विकास कार्यों में खर्च करते है सांसद निधि का पूरा फंड
सांसद निधि के लिए मिले पैसे का अधिकांश हिस्सा बहुत सारे सांसद खर्च नहीं कर पाते. लेकिन मनोज सिन्हा उन चुनिंदा सांसदों में से हैं जिन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र की जनता के विकास के लिए अपना पूरा फंड खर्च किया.