जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। कई देश बाढ़ और सूखा की अप्रत्याशित स्थितियों का सामना कर रहे हैं। मौसम में अचानक बदलाव और ग्लोबल वार्मिग से खाद्यान्न सुरक्षा पर भी संकट मंडरा रहा है। आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी आफ सनशाइन कोस्ट के लेक्चरर चरित रत्नायक ने आस्ट्रेलिया के मौसम में आ रहे बदलावों को आधार बनाते हुए बताया है कि कैसे बदलता मौसम फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के समक्ष संकट पैदा कर रहा है।

फलों और सब्जियों की बदल रही संरचना: आस्ट्रेलिया में सूखे की समस्या गंभीर हो रही है। सूखा मौसम फलों और सब्जियों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। ज्यादा सूखे मौसम में तैयार होने वाले फल व सब्जियों को ड्राई फूड में तब्दील करना ज्यादा मुश्किल होता है। आस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर ड्राई फूड का सेवन होता है। साथ ही करीब 70 फीसद उत्पाद का निर्यात भी होता है। 2018-19 में आस्ट्रेलिया ने 2.51 करोड़ डालर (करीब 185 करोड़ रुपये) मूल्य की विभिन्न प्रकार की किशमिश का निर्यात किया था। मौसम में हो रहा बदलाव ऐसे ड्राई फूड पर निर्भर कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए संकट बन रहा है।
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पौधों व उनके उत्पादों के विकास पर ऐसे पड़ता है सूखे का असर: लगातार सूखे की स्थिति से पौधों के सेल्स (कोशिका) और टिश्यू (ऊतक) में पानी की मात्र कम होने लगती है। इससे फलों व सब्जियों की संरचना बदलती है। उदाहरण के तौर पर, सूखा पड़ने से सेब ज्यादा सख्त होने लगते हैं और उन्हें सुखाकर ड्राई फूड बनाना मुश्किल हो जाता है। पौधे छोटे होने और उत्पादन कम होने का खतरा भी बढ़ जाता है। आलू चिप्स, किशमिश और इस तरह के अन्य ड्राई फूड की प्रोसेसिंग भी मुश्किल होती है। यही नहीं, उनका स्वाद भी प्रभावित होता है और कई बार ऐसे उत्पाद इस्तेमाल के लायक ही नहीं रह जाते हैं।
सरकारों की सतर्कता से ही निकलेगी समाधान की राह: निश्चित तौर पर इस संकट का पहला समाधान यही है कि सभी सरकारें मिलकर जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने की दिशा में जरूरी कदम उठाएं। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाए, जिससे ग्लोबल वार्मिग का खतरा कम हो। इसके अलावा, आस्ट्रेलिया के शोधकर्ता एवं इंजीनियर फूड प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में बदलाव पर भी शोध कर रहे हैं। इससे बदली संरचना वाले फलों व सब्जियों से ड्राई फूड बनाना आसान हो सकेगा। हालांकि यह जटिल प्रक्रिया है और इसके लिए पौधों की कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन को समझने की जरूरत होगी। यह तरीका तात्कालिक है। इस संकट से बाहर आने के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करना ही स्थायी समाधान है।
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