शरीर में रोग उत्पन्न होने का कारण है असंतुलन। इस असंतुलन को आध्यात्मिक चिकित्सा द्वारा जड़ से मिटाया जा सकता है। जहां एक ओर आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोगों का दमन अथवा रोगग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट कर उपचार करती है वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक चिकित्सा में रोग के मूल कारण को ही नष्ट कर दिया जाता है।ये भी पढ़े: कैंसर से बचना है तो करे भीगे हुए बादाम का सेवन करे, देखे लाभ
रोग के मूल कारण में परिवर्तन
ऋषि अंगिरस ने आध्यात्मिक चिकित्सा का वर्णन अथर्ववेद में ‘यतु विद्या’ के अंतर्गत विस्तारपूर्वक किया है। आध्यात्मिक चिकित्सा का प्रभाव अविलंब होता है। इस चिकित्सा प्रणाली में उपचार रंगों के माध्यम से किया जाता है। इस सृष्टि में विभिन्न रंग हैं और प्रत्येक रंग के अनगिनत भेद हैं। इनमें से कुछ सुखद अनुभूति कराते हैं तो कुछ निराशा के प्रतीक हैं। इसी तरह भिन्न-भिन्न रंग प्रेम, दिव्यता, सत्ता, क्रोध इत्यादि के भी प्रतीक हैं। प्रत्येक रंग दूसरे से भिन्न है इसलिए शरीर पर प्रत्येक का प्रभाव भी दूसरे से भिन्न होता है। इन रंगों के प्रयोग से एक अध्यात्मिक चिकित्सक रोगी के सूक्ष्म कोशों में प्रवेश कर रोग के मूल कारण में परिवर्तन करता है।
रोग के मूल कारण में परिवर्तन
ऋषि अंगिरस ने आध्यात्मिक चिकित्सा का वर्णन अथर्ववेद में ‘यतु विद्या’ के अंतर्गत विस्तारपूर्वक किया है। आध्यात्मिक चिकित्सा का प्रभाव अविलंब होता है। इस चिकित्सा प्रणाली में उपचार रंगों के माध्यम से किया जाता है। इस सृष्टि में विभिन्न रंग हैं और प्रत्येक रंग के अनगिनत भेद हैं। इनमें से कुछ सुखद अनुभूति कराते हैं तो कुछ निराशा के प्रतीक हैं। इसी तरह भिन्न-भिन्न रंग प्रेम, दिव्यता, सत्ता, क्रोध इत्यादि के भी प्रतीक हैं। प्रत्येक रंग दूसरे से भिन्न है इसलिए शरीर पर प्रत्येक का प्रभाव भी दूसरे से भिन्न होता है। इन रंगों के प्रयोग से एक अध्यात्मिक चिकित्सक रोगी के सूक्ष्म कोशों में प्रवेश कर रोग के मूल कारण में परिवर्तन करता है।
‘औरा’ है वास्तविकता में प्राणकोश
हमने महापुरुषों के चित्र देखे होंगे, उनके सिर के आस-पास स्वर्ण आभा नजर आती है। उनके स्थूल शरीर के चारों ओर दिव्य श्वेत रोशनी। यही होता है प्राणमय कोश, जिसका आपने अभी अभी अनुभव किया है। आपके स्थूल शरीर का नियंत्रण, प्रत्येक क्षण, इसी सूक्ष्म प्राणमय कोश द्वारा होता है। सनातन क्रिया में कुछ ऐसी तकनीकों का उल्लेख है, जिनके द्वारा हम इस सूक्ष्म कोश में प्रवेश कर किसी भी असंतुलन को सूक्ष्म स्तर पर हटा सकते हैं, स्थूल शरीर में उस रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व। यह एक अत्यंत शक्तिशाली विज्ञान है। एक आध्यात्मिक चिकित्सक को इस विज्ञान का प्रयोग करने से पूर्व ध्यान एवं योग की कुछ क्रियाओं का नियमित अभ्यास कर स्वयं को चेतना के एक स्तर पर लाना होता है। साथ ही सदैव यह ध्यान रखना होता है कि इस चिकित्सा का प्रयोग गुरु कृपा से ही संभव है। इसके अतिरिक्त शुद्धिकरण और अनुशासन का पालन करना आवश्यक होता है। किसी भी एक की अवहेलना आध्यात्मिक चिकित्सक को क्षति पहुंचा सकती है।