कायदों को मानने का दबाव होता है। लेकिन इन सब दिखावों के बीच बाचाबाजी यहां का काला सच है, जिसे देश में हमेशा से छिपाने की कोशिश की जाती है। यहां मनोरंजन के लिए लड़कों को लड़कियों के लिबास में नचाया जाता है। यहीं नहीं लड़कियों के कपड़ों में नाचने वाले ये लड़के सेक्स स्लेव भी होते हैं। इनकी बोली लगती है, मालिक उन्हें खरीदता है और फिर शुरू हो जाता है उनके सेक्स स्लेव बनने का सफर।
यहां 10 से 12 साल के लड़के पुरुषों के बीच लड़कियों के लिबास में जश्न के मौके पर डांस करते हैं। ये बहुत कुछ सेक्स स्लेवरी की तरह है, जिसमें लड़के पुरुषों को सेक्शुअल सैटिस्फेक्शन भी देते हैं। नाच-गाने के बाद इस पार्टी खत्म होने पर इस पेशे का असल सच सामने आता है। लड़कों को जश्न में आए पुरुषों को एक के बाद एक सौंपा जाता है, ताकि वो उनके साथ अपनी सेक्शुअल डिजायर पूरी कर सकें। लड़कों को पार्टी में नाचने के एवज में पैसे नहीं मिलते। अपने मालिक के साथ संबंधों पर ही उनकी जिंदगी कटती है। उनका मालिक ही सेक्स के बदले में उन्हें रहने का ठिकाना और बाकी जरूरतें पूरी करता है।
तालिबान के आने के बाद पिछले 15 साल में ये पेशा तेजी से पनपा है। गरीबी इसके पीछे एक अहम वजह है। इस पेशे से जुड़े शुकूर को 12 साल की उम्र में उसके घर से अगवा कर लिया गया था। पांच साल भटकने के बाद रोजी-रोटी के लिए शुकूर को बाचाबाजी के पेशे में उतरना पड़ा। ऐसी ही कहानी करीब-करीब उन सभी लड़कों की है, जो इस पेशे से जुड़े हैं। इस अपराध में शामिल लोगों में ज्यादातर बड़े बिजनेसमैन और रसूखदार लोग होते हैं। इन्हें सजा देने के बजाय पुलिस प्रोटेक्शन मिलता है।