आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका भर्ती में अपात्रों को पात्र बनाने का खेल चलता रहा। दस्तावेज सत्यापन से लेकर प्रत्येक पद के लिए पांच-पांच अभ्यर्थियों के चयन तक में नियमों की अनदेखी की गई। नतीजा 12 अभ्यर्थियों ने अंकों में हेराफेरी और अवैध प्रमाण पत्रों से नौकरी हासिल कर ली।
जिले में 469 आंगनबाड़ी के रिक्त पदों के लिए 12 हजार से अधिक आवेदन आए थे। प्रत्येक पद के लिए पांच-पांच अभ्यर्थियों को चिह्नित किया गया। उन्हें सीडीपीओ ने साक्षात्कार व दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलाया। दस्तावेज सत्यापन व साक्षात्कार कमेटी में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ), परियोजना निदेशक (पीडी) ग्राम्य विकास अभिकरण, जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) व बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) शामिल थे।
लेकिन, दस्तावेज सत्यापन के समय सीडीओ, पीडी व डीपीओ गैर हाजिर रहे। सीडीपीओ पर जिम्मेदारी छोड़ दी। जिसकी आड़ में सीडीपीओ ने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए आंख मूंद कर दस्तावेज सत्यापित कर दिए। नियुक्ति पत्र भी सीडीपीओ ने ही बांटे। आरोप है कि पांच सीडीपीओ ने डीपीओ से सांठगांठ कर अपात्रों को पात्र बना नौकरी दिलाई।
आंगनबाड़ी भर्ती के नाम पर सौदेबाजी की गई। प्रत्येक पद के लिए बोली लगी। बोली में नाकाम रहे अभ्यर्थियों ने भर्तियां होने के बाद शिकायतें कीं। जिनकी जांच में 12 अभ्यर्थी अपात्र मिले हैं। यह स्थिति तब है जब आंगनबाड़ी भर्ती प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही। विभागीय मंत्री प्रतिभा सिंह ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन पोर्टल बनाया। लेकिन, अपात्रों ने धनबल से यहां भी सेंध लगाई। ऐसे में पूरे मामले में सीडीपीओ की भूमिका संदिग्ध प्रतीत हो रही है।