पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का विरोध बढ़ता जा रहा है। बिजली दर की सुनवाई के दौरान कर्मचारी संगठनों के साथ ही उपभोक्ताओं एवं किसानों ने जबरदस्त विरोध किया। अब लखनऊ में 21 जुलाई को होने वाली जनसुनवाई में विरोध की तैयारी शुरू हो गई है। इसे लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने जनसंपर्क अभियान शुरू कर दिया है। वहीं, उपभोक्ता परिषद तकनीकी बारीकियों पर सवाल खड़े करने की तैयारी में है।
सुनवाई पूरी होने के बाद नियामक आयोग बिजली दरें तय करेगा। इस बार की जनसुनवाई के दौरान वाराणसी से लेकर मेरठ तक निजीकरण को रद्द करने की मांग उठती रही। लखनऊ में होने वाली सुनवाई को लेकर भी विरोध की तैयारी शुरू हो गई है। पूर्वांचल, दक्षिणांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल, केस्को द्वारा विद्युत नियामक आयोग में कुल लगभग 113060 करोड़ का वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल किया गया है।
इस वर्ष लगभग 86952 करोड़ की बिजली खरीदी जानी है। प्रदेश सरकार की तरफ से राजकीय सब्सिडी 17511 करोड़ मिलनी है। पॉवर काॅर्पोरेशन की तरफ से 2025-26 में कुल लगभग 19644 करोड़ का गैप दिखाया गया है। काॅर्पोरेशन ने कुल घाटा करीब 24022 करोड़ प्रस्तावित किया है। ऐसे में बिजली दरों में औसत 28 फीसदी और घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में लगभग 45 फीसदी तक की बढ़ोतरी प्रस्तावित की गई है।
वहीं, संघर्ष समिति ने कहा कि पॉवर काॅर्पोरेशन मनोबल तोड़ने के लिए मनमाने ढंग से उत्पीड़न कर रहा है। बिजली कर्मियों के घरों पर रियायती बिजली की सुविधा समाप्त करने के लिए स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जो पूरी तरह से गलत है। वहीं डिजिटल हाजिरी के नाम पर करीब छह हजार से अधिक कार्मिकों का जून माह का वेतन रोक दिया गया है।
नहीं बढ़ने दी जाएंगी बिजली दरें, निजीकरण भी होगा रद्द
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि उपभोक्ताओं का निगमों पर बकाया 33122 करोड़ लौटाया जाए। इसके बाद बिजली दरें बढ़ाने पर विचार होना चाहिए। जब तक उपभोक्ताओं का बकाया नहीं लौटाया जाता है तब तक बिजली दर नहीं बढ़ने दी जाएगी। जिस तरह से जनसुनवाई के दौरान हर वर्ग के लोग निजीकरण का विरोध कर रहे हैं, उसे तत्काल रद्द किया जाए।