भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा के अलग अलग समय नियुक्त हैं। यदि सही समय में सावधानी एवं नियम का पालन करके शिवजी की पूजा या आराधना की जाए तो उसका तुरंत ही असर होता है। यदि आप पूजा नहीं करते हैं तो कम से कम इन दिनों में आपको पवित्र बने रहना आवश्यक है अन्यथा आप मुसीबत में फंस सकते हैं तो आओ जानते हैं कि शिवजी के कौनसे 5 ऐसे समय है जबकि हमें सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि इस समय में शिवजी ही नहीं उनके गण में उनके साथ सक्रिय रहते हैं।
1.सोमवार : सोमवार शिवजी का खास दिन है इस दिन उनकी पूजा और आराधना होती है। इस दिन का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।
2.प्रदोष काल : यदि आपको किसी अमंगल से बचना हो तो शिवजी के प्रदोष काल को जानना जरूरी है। हर दिन प्रदोष काल होता है। सूर्यास्त से दिनअस्त तक का समय भगवान ’शिव’ का समय होता है जबकि वे अपने तीसरे नेत्र से त्रिलोक्य (तीनों लोक) को देख रहे होते हैं और वे अपने नंदी गणों के साथ भ्रमण कर रहे होते हैं। इस काल में भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का जो अपराधी होता है कठोर दंड पाता है। इस वक्त भोजन, पानी, संभोग, यात्रा, बहस और हर तरह की वार्तालाप करने की मनाही है। इस काल को धरधरी का काल कहते हैं जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय रहती है। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
3.मासिक शिवरात्रि : हर माह एक शिवरात्रि होती है जिसे मासिक शिवरात्रि कहते हैं। हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मासिक शिवरात्रि के व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
4. श्रावण माह की शिवरात्रि : जब प्रदोष श्रावण माह में आता है तो वह बड़ी शिवरात्रि मानी जाती है। श्रावण मास की चतुर्दशी की शिवरात्रि भी धूम-धाम से मनाई जाती है।
5.महाशिवरात्रि : फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।