एक तरफ बुनियादी विकास, औद्योगीकरण और रोजगार को लेकर उठाए गए कदमों ने प्रदेश की तस्वीर बदली तो दूसरी तरफ संपत्ति को लेकर घर-घर में चल रहे झगड़े खत्म करने और बिल्डरों के चंगुल में फंसकर धोखे का शिकार किसानों को बचाने के लिए बड़े फैसले लिए गए। रक्त संबंधों में केवल पांच हजार रुपये की रजिस्ट्री का असर ये हुआ कि प्रापर्टी से जुड़े ढाई लाख विवाद खत्म हो गए। इसी तरह रक्त संबंधों के बाहर पावर ऑफ अटार्नी करने पर सात फीसदी स्टांप शुल्क लगाकर किसानों को फ्राड से बचाने की पहल की गई।
पुश्तैनी जमीन से जुड़े लाखों मामले दशकों से अदालत में फाइलों में दबे हैं। बंटवारा न होने से भाई-भाई का दुश्मन हो गया है। इस कटुता को खत्म करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया गया है। इसके मुताबिक जिस जमीन पर पूरे खानदान के जितने दावेदार होंगे, सभी को एक साथ बुलाकर मौके पर बंटवारा कर दिया जाएगा। इसके एवज में सिर्फ पांच हजार रुपये स्टांप शुल्क लिया जाएगा।
अभी बंटवारे के तीन रास्ते, तीनों ही पेंचीदा
– मान लीजिए एक 100 साल पुरानी पुश्तैनी जमीन है। जिसकी कीमत एक करोड़ रुपये है। उस पर खानदान के 36 लोग दावेदार हैं। तो अभी बंटवारे के ये तीन रास्ते हैं। पहला रास्ता, सभी तहसील में जाएंगे। वहां कुटुंब का रजिस्टर बनेगा। बताना होगा कि 36 लोग दावेदार हैं और आपस में तय किया है कि कौन सा परिवार उस जमीन के कितने हिस्से में रहेगा और कहां रहेगा। अब जमीन की नापजोख के लिए लेखपाल को लगाया जाता है। वहीं से मामला लटकने लगता है। दस साल से चालीस साल तक लग जाते हैं।
– दूसरा रास्ता, मामला कोर्ट में जाता है। परिवार में केस चलता है। फैसला आने में बरसों लग जाते हैं। वहीं,
– तीसरा रास्ता यह है कि सभी दावेदार एक साथ रजिस्ट्री विभाग पहुंचकर सेटलमेंट का आवेदन करते हैं। इसके तहत प्रापर्टी पर लगने वाले स्टांप शुल्क में केवल 30 फीसदी छूट का प्रावधान है। अगर एक करोड़ की प्रापर्टी है। सात लाख का स्टांप शुल्क है तो उस पर 2.10 लाख रुपये की छूट मिलेगी। यही विवाद की जड़ है कि जब प्रापर्टी हमारी है तो 4.90 लाख रुपये स्टांप क्यों दें। फिर विवाद की दूसरी जड़ ये है कि इसे कौन दे। अंतत: मामला लटक जाता है। यही वजह है कि इस नियम के तहत आने वाले बंटवारे के आवेदन एक फीसदी से भी कम हैं। हालांकि अब चौथा रास्ता लाने की तैयारी की गई है। सभी दावेदार रजिस्ट्री विभाग पहुंचकर लिखित में अपना-अपना हिस्सा बताएंगे। केवल पांच हजार रुपये के स्टांप पर प्रापर्टी का सेटलमेंट और बंटवारा हो जाएगा।
किसानों को ठगी से बचाने के लिए पावर आफ अटार्नी को तीन हिस्सों में बांटा
दो लाख से ज्यादा किसान ठगी के शिकार थे। ये फ्राड इस तरह से किया जा रहा था। मान लीजिए किसी बिल्डर ने किसान से एक करोड़ रुपये की जमीन खरीदी। रजिस्ट्री की जगह सौ रुपये के स्टांप पर किसान से पावर ऑफ अटार्नी ले ली। फिर जमीन को डेवलप किया और प्लाट में बांटकर चार करोड़ रुपये में बेच दी। बिल्डर उन प्लाटों की रजिस्ट्री सीधे किसान से कराता था। यानी चार करोड़ रुपये की कमाई कागजों में किसान के खाते में आती थी। आयकर विभाग उन्हें नोटिस भेजता था और बिल्डर रकम लेकर निकल जाता था। इससे स्टांप शुल्क को भी चूना लग रहा था। अकेले पश्चिमी यूपी में दो लाख किसान इस फ्राड के शिकार थे। इसलिए पावर ऑफ अटार्नी पर रोक लगा दी गई। इससे करीब 30 लाख किसान ठगी से बचे। इसे देखते हुए पावर ऑफ अटार्नी को भी तीन हिस्सों में बांटा गया।
1-केयर टेकर के लिए केवल 100 रुपये में : प्रापर्टी की देखरेख के लिए किसी को पावर ऑफ अटार्नी देने पर सिर्फ 100 रुपये का स्टांप लगेगा।
2-रक्त संबंधों में प्रापर्टी देने पर स्टांप सिर्फ 5,000 रुपये : पिता, माता, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू, पुत्री, दामाद, भाई, बहन, पौत्र-पौत्री, नाती-नातिन और विधवा बहू के मामले में पावर ऑफ अटार्नी के जरिये अचल संपत्ति बेचने का अधिकार देने पर सिर्फ पांच हजार रुपये की स्टांप ड्यूटी लगेगी।
3-रक्त संबंधों के बाहर पूरी स्टांप ड्यूटी : उपरोक्त के अतिरिक्त किसी के नाम भी पावर ऑफ अटार्नी करने पर वही स्टांप लागू होगा, जो सामान्य रूप से संपत्ति की खरीद-फरोख्त पर लागू होता है। यानी सात फीसदी स्टांप शुल्क देना होगा।
सात साल से नहीं बढ़ा सर्किल रेट
पिछले सात साल में सर्किल रेट नहीं बढ़ा है लेकिन स्टांप राजस्व लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले सालाना दस फीसदी सर्किल रेट बढ़ता था। यानी सात साल में इसे न बढ़ाकर हर वर्ष 35 हजार करोड़ रुपये की बचत उन लोगों की हुई है, जिन्होंने इस अवधि में संपत्ति की खरीद-फरोख्त की है। अभी तक दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राहत मिल चुकी है।
संपत्ति की मालकिन महिलाएं भी
पांच हजार रुपये की गिफ्ट डीड ने महिलाओं को संपत्ति में खूब अधिकार दिए। भाई ने बहन, पिता ने बेटी, पति ने पत्नी को तो ससुर ने बहु को संपत्ति दान की। केवल तीन साल में ही लगभग 31 लाख प्रापर्टी महिलाओं के नाम की गई। पिछले साल रक्षा बंधन पर भाइयों ने 44 हजार संपत्ति अपनी बहनों को तोहफे में दी।
वेल्थ एंड सोशल रिलेशंस एक्सपर्ट दिनेश चंद्र शुक्ला का कहना है कि गांव में लगभग 45 और शहरों में 30 फीसदी से विवाद की जड़ संपत्ति है। इसे खत्म करने की दिशा में प्रदेश सरकार के उठाए गए कदम क्रांतिकारी हैं। अगले पांच वर्ष में इनका सकारात्मक असर खुद ब खुद दिखाई देगा। जब परिवारों की कलह और किसानों को जालसाजों से बचाने के मामले एकाएक घट जाएंगे।