मिठाई की दुकानों पर खासतौर से बारिश के मौसम में गोल छोटे तवे के साइज जितनी एक अलग ही तरह की मिठाई देखने को मिलती है जिसे घेवर कहा जाता है। राजस्थान में तो ये बारिश के मौसम में ही देखने को मिलती है। जिसे तीज़, त्योहारों में बड़े चाव के साथ खाया और खिलाया जाता है। घेवर के असली स्वाद से रूबरू हुए लोगों को कहीं और का स्वाद पसंद ही नहीं आता। इसलिए यहां इस मिठाई को लोग पैक कराके भी ले जाते हैं। 
कहां से आया है घेवर
वैसे तो घेवर का अलग से कोई इतिहास है। लेकिन इसे राजस्थान की ही उत्पत्ति मानते हैं। राजस्थान खानपान के मामले में बहुत ही अलग है। मसालों से लेकर मिठाईयों तक का स्वाद जल्द कोई भूलता नहीं। इसकी जितनी वैराइटी आपको राजस्थान में मिलेगी उतनी ही ब्रज भूमि मथुरा में भी। रेस्टोरेंट्स में गोल जालीदार वाली इस मिठाई को हनीकॉम्ब डेज़र्ट के नाम से भी ऑर्डर किया जा सकता है।
त्योहार का दूसरा नाम है घेवर
राजस्थान में तो तीज का उत्सव घेवर के बिना अधूरा है। यहां इस त्योहार को बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है और उसमें घेवर की मिठास जरूरी है। इसके अलावा रक्षा बंधन के मौके पर मथुरा, बुलंदशहर यहां तक कि दिल्ली, नोएडा में भी घेवर का जायका चखने को मिल जाएगा। और तो और इस जगहों पर रक्षा-बंधन में लोग लड्डू-पेड़े और बर्फी की जगह घेवर ले जाना पसंद करते हैं।
ऐसे तैयार करते हैं घेवर
ट्रेडिशनली घेवर तैयार करने के लिए मैदे और अरारोट के घोल वाले मिक्सचर को सांचों में डाला जाता है। फिर इसे शुद्ध घी और चाशनी में भीगाया जाता है जो इसके स्वाद को दोगुना करते हैं। वैसे तो एक्सपर्ट्स ने घेवर बनाने, सजाने और परोसने के कई सारे तरीके ईजाद किए हैं जिसमें मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर खास हैं। समय बदलने के साथ ही घेवर को बनाने, सजाने और परोसने में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिले लेकिन मिठास आज भी वैसे ही बरकरार है। चाशनी में डूबे घेवर पर रबड़ी और सूखे मेवों का वर्क हर एक को पसंद आएगा जिसे मीठाई हो।
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