राजस्थान में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की भारी कमी है। तय पदों में आधे से अधिक पद रिक्त हैं और हर साल औसतन डेढ़ सौ से अधिक शिक्षकों की सेवानिवृत्ति होनी है। कोरोना महामारी के बीच विद्यार्थियों की पढ़ाई सोशल डिस्टेंडिंग से कराया जाना संभव नहीं हो पाएगा। ऐसे में राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ को उम्मीद है कि राज्य सरकार, केन्द्र सरकार एवं अन्य राज्यों की भांति प्रदेश में उच्च शिक्षा के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु साठ से पैंसठ साल करेगी।
कोरोना महामारी के चलते आर्थिक संकट झेल रही राज्य सरकार को भी लगभग 815 करोड़ रुपए के भुगतान को लेकर राहत मिलेगी। राजस्थान के विभिन्न राजकीय विश्वविद्यालयों तथा राजकीय कॉलेजों में 6500 पदों में से पहले से ही 3500 पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं, जबकि आगामी पांच साल में 815 शिक्षक सेवाविृत्त होने वाले हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में 134, साल 2021 में 147, 2022 में 187, 2023 में 175 तथा साल 2024 में 174 शिक्षक सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इस तरह हर साल औसतन डेढ़ सौ से अधिक शिक्षकों की सेवानिवृत्ति होनी है। इन शिक्षकों को सेवानिवृत्ति के बाद ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण, पेंशन का कम्यूनिटेशन आदि परिलाभ मिलाकर लगभग एक करोड़ रुपए प्रति शिक्षक भुगतान करना होता है। इस तरह अगले पांच सालों में राज्य सरकार पर आठ सौ पंद्रह करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा।
कोरोना महामारी के दौरान शिक्षक संघ यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि राज्य सरकार को ऐसे में अन्य प्रदेशों की तरह सेवानिवृत्ति आयु साठ से बढ़ाकर पैंसठ वर्ष कर देनी चाहिए। इससे राज्य सरकार को आर्थिक भुगतान को लेकर राहत मिलेगी, वहीं रिक्त पदों की संख्या भी नहीं बढ़ेगी। इन राज्यों में उच्च शिक्षा में सेवानिवृत्ति आयु है पैंसठ साल देश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, मणिपुर, सिक्किम, आसाम, उत्तराखंड एवं झारखंड में उच्च शिक्षा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु साठ की बढ़ाकर पैंसठ वर्ष की जा चुकी है। जबकि गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गोवा, मिजोरम, पुद्दुचेरी, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में उच्च शिक्षा के सेवानिवृत्त शिक्षकों के आयु साठ साल की बजाय बासठ साल है।
कोरोना महामारी के बीच कैसे होगी सोशल डिस्टेंडिंग से पढ़ाई
कोरोना महामारी के बीच उच्च शिक्षा संस्थानों को खोले जाने तथा उनमें सोशल डिस्टेंडिंग अपनाते हुए शिक्षा कार्य शुरू कराए जाने की तैयारी चल रही है। जबकि सरकारी उच्च शिक्षण केंद्रों में पहले से ही आधे से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं जबकि एक ही कक्षा में दो से तीन गुने तक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। जबकि सोशल डिस्टेंडिंग के दौरान तीस से अधिक विद्यार्थी कक्षा में शामिल नहीं करने होंगे। ऐसे में शिक्षकों की कमी पड़ेगी या तय नियम की पालना संभव नहीं हो पाएगी। ऐसे में शिक्षण व्यवस्था गड़बड़ाने की आशंका बनी हुई है।
यूजीसी की अनुशंसा, सेवानिवृत्ति आयु 65 साल की जाए
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान यूजीसी ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने की अनुशंसा की थी। जिसे राजस्थान में लागू नहीं किया गया। आने वाले समय में
राज्य के विश्वद्यियालयों में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भारी कमी हो जायेगी, जिसके कारणनेक की ग्रेडिंग और गुणवत्ता पूर्ण शोध कार्य प्रभावित होंगे।
इनका कहना है
डॉ. विनोद शर्मा, प्रोफेसर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर- मौजूदा हालत में राजस्थान सरकार को उच्च शिक्षा के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु साठ से बढ़ाकर पैंसठ कर देनी चाहिए। यह राज्य सरकार पर वित्तीय भार को कम ही नहीं करेगी, बल्कि छात्र हित में रहेगा। जुलाई 2020 के बाद राज्य के 150 से अधिक कालेजों में प्रिसिंपल नही होंगे।
डॉ. विजय कुमार ऐरी, महासचिव, रूकटा, राजस्थान -शिक्षक-छात्र अनुपात भी बहुत अधिक है, ऐसे में कोरोना महामारी के दौरान एक कक्षा में तीस से अधिक छात्रों को बैठाना किस तरह संभव होगा। यूजीसी नियमों के तहत सेवानिवृत्ति आयु 65 साल कर देनी चाहिए।