राजस्थान: यहां रक्षाबंधन पर पेड़ों को बांधी गईं हजारों राखियां

बहनों के लिए रक्षाबंधन का पर्व बेहद महत्वपूर्ण है, जिस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती है। लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव की कहानी बेहद अलग है। पर्यावरण की रक्षा के लिए यहां महिलाएं पेड़ों को राखी बांधती हैं। इस रक्षाबंधन में भी हजारों महिलाओं ने यहां लगे हुए लाखों पेड़ों को राखी बांधकर रिकॉर्ड बनाया।

राजस्थान के राजसमंद इलाके में बसा गांव पिपलांत्री देश का वह अनूठा गांव है, जहां पर रक्षाबंधन का एक अलग ही रिवाज कायम है। इस गांव में हर रक्षाबंधन पर लगे हुए लाखों पेड़ों पर हजारों महिलाएं राखियां बांधती हैं। इस रक्षाबंधन पर भी पिपलांत्री गांव में हजारों महिलाओं ने जाकर राखी बांधी। खास बात यह है कि इस गांव में सिर्फ गांव की महिलाएं या आसपास के शहरों और गांव की महिलाएं ही नहीं बल्कि दूर दराज के जिलों से भी महिलाएं राखी बांधने आती हैं। पर्यावरण को लेकर इस गांव में एक और अनूठी शुरुआत हुई। यहां पैदा होने वाली लड़की के साथ परिवार 111 पेड़ भी लगाता है।

बहनों के लिए रक्षाबंधन का पर्व बेहद महत्वपूर्ण है, जिस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती है। लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव की कहानी बेहद अलग है। पर्यावरण की रक्षा के लिए यहां महिलाएं पेड़ों को राखी बांधती हैं। इस रक्षाबंधन में भी हजारों महिलाओं ने यहां लगे हुए लाखों पेड़ों को राखी बांधकर रिकॉर्ड बनाया। राजसमंद के पिपलांत्री गांव के रहने वाले चारू शर्मा बताते हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए शुरू की गई इस मुहिम को हर साल देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां पर देखने भी आते हैं। वह कहते हैं कि रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने की ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी यहां महिलाएं रखती हैं। यहां लगाए गए पौधे अब तीस फीट ऊंचाई के हो चुके हैं।

जावरा गांव के रहने वाले डॉ. हरीश भल्ला कहते हैं कि पिपलांत्री गांव में रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधने के साथ एक और खास बात जुड़ी है। कुछ हजार की आबादी वाले इस गांव में बेटी के जन्म पर परिवार के लोग 111 पौधे लगाते हैं। पर्यावरण रक्षा की इस अनोखी मिसाल की शुरूआत यहां के सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने की थी। अपनी बेटी की मौत से टूटे पालीवाल ने उसकी याद में यह पहल की और इससे पूरा गांव ही नहीं आसपास के गांव भी जुड़ गये। गांव के पालीवाल परिवार से ताल्लुक रखने वाले परिजन कहते हैं कि कभी उनका गांव बेहद खूबसूरत हुआ करता था। लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के कारण यहां पहाड़ियां खोद दी गई। भूजल पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा। परंतु जो डेढ़ दशक पहले पिपलांत्री गांव पथरीला था अब हरियाली में बदल गया है। संगमरमर की खदानों के कारण यहां पेड़ पौधों की ओर ध्यान नहीं दिया गया पर जब से बेटियों की याद में पौधे लगाने की शुरूआत हुई, तब से यहां की किस्मत बदल गई। अब यह क्षेत्र हरियाली से पूरी तरह भर चुका है। गांव के लोगों का कहना है कि बीते कुछ सालों में गांव के चरागाह पर 3 लाख से ज़्यादा पेड़ लगाए गए। जिसमें नीम, शीशम, आम और आंवला शामिल हैं।

डॉक्टर भल्ला का कहना है कि यहां पर लड़कियों के पैदा होने के बाद गांव के ही लोग पैसा इकट्ठा कर उसकी एफडी भी करते हैं। लड़की के जन्म के बाद ग्रामीण सामूहिक रूप से 21 हजार रुपये का योगदान करते हैं। जबकि माता-पिता से 10 हजार रुपये लेकर एक एफडी बैंक खाते में जमा करते हैं। जिसका उपयोग लड़की के 18 वर्ष होने के बाद ही किया जा सकता है। डॉक्टर भल्ला कहते हैं कि पर्यावरण के प्रति शुरू किए गए इस अभियान से इस गांव में भूजल स्तर तो बढ़ा ही है, बल्कि वन्यजीवों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। वह कहते हैं कि 2006 में शुरू हुई इस शुरुआत के बाद से लेकर अब तक उनके गांव में ढाई लाख से ज्यादा एलोवेरा के पौधे लगाए गए हैं। पिपलांत्री गांव के बारे में डेनमार्क सरकार से जुड़े हुए अधिकारियों ने यहां का दौरा भी किया था। अभी भी पर्यावरण को लेकर शुरू हुए एक्सचेंज स्टडी प्रोग्राम के तहत वहां के बच्चे इस गांव के बारे में जानने समझने के लिए आते है।

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