राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चार लोगों को मिली फांसी की सजा को बरकरार रखने की गृह मंत्रालय की सलाह को दरकिनार करते हुए उम्रकैद में बदल दिया। इन चारों को 1992 में बिहार के बारा नरसंहार कांड में 34 अगड़ी जाति (भूमिहार) के लोगों की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
1990 के दशक में बिहार में जाति को आधार बना बहुत सी हत्या की घटनाएं हुई थीं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण घटना थी- बारा नरसंहार कांड। लगभग 25 साल पहले, गया के नजदीक बारा गांव में भूमिहार जाति के 34 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड के पीछे माओस्टि कम्यूनिस्ट सेंटर(आज की सीपीआई-माओस्टि) का हाथ होने का आरोप लगा। न्यायालय ने इस मामले में चार लोगों को मौत की सजा सुनाई जिनमें से तीन दलित समुदाय से थे।
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राष्ट्रपति से माफी पाने वालों में कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेद्र सिंह उर्फ धारु सिंह शामिल हैं। इन चारों की सजा बदलने का आग्रह बिहार सरकार ने किया था। बिहार सरकार को अंदेशा था कि अगर इन्हें फांसी की सजा मिली तो बिहार में एक बार फिर से जातीय संघर्ष भड़क सकता है।