राष्ट्रपति चुनाव पर बढ़ते सियासी पारे के बीच विपक्षी दलों की इस मसले पर बुधवार को बैठक होने जा रही है. सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने पहले ही तय किया है कि इस मसले पर छोटी कोर समिति बनाए जाए जो सर्वसम्मत उम्मीदवार को खोजने की दिशा में आगे बढ़े. इस बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी तीन सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति का गठन किया है. इसका एजेंडा भी विभिन्न दलों के साथ संपर्क कर सर्वसम्मत उम्मीदवार की तलाश और उस पर सहमति बनाना ही है.कांग्रेसी नेता ने व्हाट्सऐप पर राहुल गांधी को कहा ‘पप्पू’ तो पार्टी ने पद से हटाया..
यहीं से बड़ा सवाल यह उठता है कि संख्याबल के लिहाज से बीजेपी के पास अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने का पहली दफा मौका है. सूत्रों के मुताबिक संघ और बीजेपी के भीतर यह आवाज भी उठ रही है कि इस मौके का लाभ उठाते हुए पार्टी की विचारधारा से जुड़े किसी शख्स को ही प्रत्याशी उतारा जाना चाहिए? इसी बात से दूसरा सवाल खड़ा होता है कि क्या ऐसे किसी प्रत्याशी के नाम पर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष सहमत होगा?
यह भी सही है कि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के पास संख्याबल का अपेक्षित आंकड़ा नहीं है. ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इस खेमे के तरफ से पेश किसी उम्मीदवार पर सत्तारूढ़ खेमा राजी होगा? इन परिस्थितियों में भले ही भले ही सत्तापढ़ और विपक्ष सर्वसम्मत उम्मीदवार का राग अलापते रहें लेकिन किसी भी तरफ से पेश किसी नाम पर आम सहमति बन पाना मुश्किल प्रतीत होता है.
इतिहास भी गवाह है कि अब तक के 13 राष्ट्रपति चुनावों में केवल एक बार ऐसी आम सहमति बनी है. इसी आधार पर 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए थे.