‘लंदन से जॉब और परिवार छोड़कर एक्टर बनने आई मुंबई’

टेलीविजन की दुनिया में आए दिन नई कहानियों के साथ नए चेहरे भी सामने आते हैं। इस कड़ी में एक नाम और जुड़ने वाला है। स्टार प्लस पर जल्द शुरू होने वाले शो ‘एक आस्था ऐसी भी’ में आस्था के किरदार से टीवी इंडस्ट्री में एंट्री कर रही हैं टीना फिलिप।लंदन में पली बढ़ीं चार्टेड अकाउंटेंट टीना ने बचपन से एक्टिंग का सपना देखा था। यही वजह थी कि वे जॉब छोड़कर मुम्बई आईं और दो साल की मेहनत के बाद बड़ा ब्रेक पाने में सफल रहीं। अपने शो के प्रमोशन के लिए टीना बुधवार को लखनऊ में मौजूद थीं।

आस्था और मुझमें समानता है

टीना कहती हैं कि मुझमें और मेरे किरदार में काफी समानता है। आस्था को अच्छे कर्मों पर विश्वास है। मैं भी ऐसा ही मानती हूं। हालांकि, मेरा विश्वास भगवान पर हैं, जबकि आस्था का नहीं। मैं भगवान की शुक्रगुजार हूं कि मैंने जो एक्टिंग का सपना देखा था, वो ‘आस्था’ के रूप में पूरा हुआ है। हमारे शो की बहुत इंट्रेस्टिंग कहानी है। आस्था की जैसी सोच है, उससे बिल्कुल उलट परिवार में उसकी शादी करा दी जाती है। उस घर में भगवान ही सब कुछ हैं लेकिन आस्था को भगवान पर विश्वास नहीं। वहीं से कहानी में ट्विस्ट आता है।

पैरंट्स ने दिया साथ

मुझे बचपन से एक्टिंग का शौक था। बचपन दिल्ली में गुजरा। इसके बाद फैमिली लंदन शिफ्ट हो गई। मैं हमेशा से एक्टिंग में जाना चाहती थी लेकिन पैरंट्स चाहते थे कि मैं चार्टेड अकाउंटेंट बनूं। अकाउंट्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं जॉब करने लगी। मैं कम्पनीज के ऑडिट किया करती थी। हालांकि, मेरा मन तो कहीं और ही था। मैं लंदन में थिएटर किया करती थी लेकिन वहां इंडियंस के लिए बहुत लिमिटेड रोल होते हैं। दो साल पहले मैं सब छोड़कर मुम्बई आ गई। पैरंट्स ने भी मुझे सपने पूरे करने की इजाजत दे दी। मुंबई में मैंने कई ऑडिशन दिए। कड़ी मेहनत के बाद मुझे यह पहला शो मिला।

तीन बार में पास किया एग्जाम

एक्टिंग के सपने को पूरा करने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया। लंदन में फैमिली को छोड़ना, स्कूल व कॉलेज के फ्रेंड्स छोड़कर एक अनजान शहर में जाना, जहां कोई रिश्तेदार न हो। ऐसी जगह में फ्लैट ढूंढना, रेंट देना और दूसरी चीजें मैनेज करना बहुत मुश्किल था। ऑडिशन के लिए दिनभर लाइन में खड़ी रहती थी। इसके बाद जब किसी जानने वाले को फेवर किया जाता था तो बुरा लगता था। इन सबके दौरान मुझे अपनी ग्रोथ महसूस हुई। एक लड़की से लेडी बनने का सफर शुरू हुआ। यहां मैंने पेशंस रखा, अपनी ऑनेस्टी पर भरोसा रखा। कई बार वापस लौटने का भी खयाल आया लेकिन फिर मुझे अपनी अकाउंटेंसी की पढ़ाई याद आई, जहां मैंने एक एग्जाम तीसरी बार में पास किया था। तब लगा कि जब मैंने पढ़ाई में हार नहीं मानी तो यहां कैसे हार मान लूं। पैरंट्स मेरे इस मुकाम से बहुत खुश हैं।

पहली बार सुना था ‘अपुन’

मैं बचपन में दिल्ली में रही हूं इसलिए हिंदी बोलने में दिक्कत नहीं होती। सबसे बड़ी बात है कि जब आप अपने देश से दूर होते हैं तो हमेशा उसके करीब रहने की कोशिश करते हैं। हमारा परिवार लंदन में है लेकिन सब आपस में हिंदी बोलते हैं। इंडियन फूड खाते हैं। हां, लेकिन भाई ज्यादा हिंदी नहीं बोलता। वह छोटा है तो अभी हम उसे सिखा रहे हैं। इंडियन टीवी शोज हमें काफी प्रभावित करते हैं। इसमें जो फैमिली बॉन्डिंग होती है, वो वेस्टर्न कल्चर में नहीं मिलती। टीवी सीरियल इंडियन फैमिली को रिफलेक्ट करते हैं। यही वजह है कि शो करते हुए भी मैं अपनी फैमिली को मिस नहीं करती। कई बार लगता है कि मुम्बई में जो लैंग्वेज मैंने सुनी, उससे ठीक मेरी हिंदी है। मुंबई में लोग अपुन, अइला वगैरह बोलते हैं। यह सब फिल्मों में तो जरूर सुना था लेकिन पहली बार रियल में सुना। मुम्बई ने मुझे बहुत प्यार दिया है। मैंने इंडस्ट्री के बारे में सुना था कि लड़कियों के लिए सेफ नहीं है। इससे बचने के लिए मैंने एक स्पीच तक तैयार की थी। हालंकि, मुझे इसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी।

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