मंडल कमीशन की रिपोर्ट ही वह हथियार है, जिसको लेकर पिछड़ा वर्ग या कहा जाए ओबीसी तबका लड़ता रहा है। इस कमीशन की रिपोर्ट पिछले 26 साल से आरएसएस और भाजपा के आंख की किरकिरी बनी हुई थी।
तत्कालीन पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब मंडल कमीशन की अधूरी रिपोर्ट को लागू किया था। (अधूरी इस लिए कि मंडल कमीशन में पिछड़ी जातियों के लिए 54 फीसदी आरक्षण की बात लिखी गई है, लेकिन बड़ी मुश्किल से विश्वनाथ प्रताप सिंह 27 फीसदी दे पाए थे।) तब भी आरएसएस और भाजपाइ गुटों ने दंगा फसाद किया था। तब भी लोगों ने आग लगाई थी। बवाल हुआ था। पिछड़ों को भला बुरा कहा गया था। यही वह काल था, जब पिछड़ों का भविष्य करवट ले रहा था।
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मंडल कमीशन की इस रिपोर्ट को 26 साल बाद भी पूरा लागू नहीं होने दिया गया। सवर्ण तबकों ने इसे हमेशा जलाने और मनुस्मृति के सिद्धांत को लागू करने की कोशिश की। वैदिक और सनातन परंपरा को फिर से पुनर्जीवित करने की बात की। आज एक बार फिर से पूरे देश में भाजपा की सरकार आने के बाद आरएसएस अपने एजेंडे को पूरी तरह लागू करने की कोशिश में जुटा हुआ है।
सच तो यह है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट को आरएसएस जलवाना चाहता है। जिस दिन नए आयोग की नई रिपोर्ट आ जाएगी। मंडल की रिपोर्ट को सवर्णवादी तांकतें खुलेआम आग लगा देंगी। वह अपना गुस्सा जाहिर करेंगे। वीपी सिंह और बीपी मंडल के पुतले जलाए जाएंगे। ऐसी तस्वीर बनती हुई साफ दिखाई दे रही है। हालात इतने बदरत हो गए हैं। पिछड़ी जातियों के नेता कुछ भी बोलने से बच रही हैं।
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आज मंडल जयंती पर भी किसी बड़े नेता का कोई बयान न आना अपने आप में चौकाने वाली बात है। मोदी ने जिस कमीशन को रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी है, वह बिना जातीय आंकड़े जुटाए कैसे काम करेगी। और सच तो ये है कि जातीय जनगणना हुई ही नहीं है। मतलब साफ है कि केवल मंडल कमीशन की काट खोजने के लिए और मंडल कमीशन को जलाने के लिए यह तैयारी हो रही है। जो आने वाले भविष्य में पिछड़ी जातियों को बांटो और राज करो के आधार पर शिकार करेगी।