हाल के वर्षों में हैपेटाइटिस-सी (पीलिया) के इलाज के लिए स्वीकृत की गई दवा न केवल लिवर फेल कर सकती है बल्कि कई प्रकार के साइट इफैक्ट भी छोड़ सकती है। इस संबंध में आई एक नई रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी की है। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष अमेरिका के खाद्य मंत्रालय के डाटाबेस पर आधारित हैं जिसमें दुनिया भर के डॉक्टरों ने काम किया है।
यह रिपोर्ट भारतीय समयानुसार बृहस्पतिवार को प्रकाशित होगी। रिपोर्ट में उन नौ प्रकार की सर्वाधिक उपयोग में आने वाली एंटी-वायरल दवाओं को भी शामिल किया गया है जिनके बारे में दावा किया जाता है कि वे बड़े स्तर पर बीमारी को बढ़ने से रोकती हैं। डॉक्टरों ने पाया कि इन दवाओं में कई साइड इफैक्ट भी हैं।
न्यूयॉर्क स्थित सेंटर फॉर लिवर डिसीज एंड ट्रांसप्लांटेशन के निदेशक डॉ. रॉबर्ट एस. ब्राउन ने कहा कि – ‘इन दवाओं से कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनके बारे में विस्तार से जांच की जानी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि – ‘हमें इस रिपोर्ट की उपेक्षा न करके रोगियों में इसका खतरा समझना चाहिए।’
डॉक्टर्स भी इस खतरनाक स्थिति से हैं अंजान
इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए एजेंसी ने वर्ष 2016 की दूसरी तिमाही के बाद से पूरी दुनिया की करीब 3 लाख नई रिपोर्टों का गहन अध्ययन किया है। नई रिपोर्ट में दो ऐसी दवाओं को भी शामिल किया गया है जो पीलिया के रोग के उपचार में बहुतायत में दी जाती है।
इनमें से पहली सोवाल्दी और दूसरी हार्वोनी है। सोवाल्दी को 2013 में स्वीकृति मिली थी जबकि हार्वोनी को 2014 में अप्रूव किया गया था। इनके अलावा कुछ अन्य एंटी-वायरल दवाएं भी रोगियों के भीतर बीमारी को 12 हफ्तों में ठीक करने का दावा करती हैं। हालांकि सोवाल्दी व हार्वोनी दवा बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि इन दवाओं से लिवर फेल नहीं हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग प्रशासन को यह रिपोर्ट मिल चुकी है लेकिन उसने इस पर कोई बात नहीं की है।
डॉ. ब्राउन ने कहा कि अधिकांश डॉक्टरों को भी इस बारे में कुछ पता नहीं है, और जब डॉक्टर्स ही इससे अंजान हैं तब रोगियों से तो कोई आशा तक नहीं की जा सकती है। वायरस से पैदा होने वाली पीलिया बीमारी सेहत से जुड़ी एक बहुत बड़ी समस्या है। अधिकांश लोगों में गंभीर लिवर रोग के चलते सिरोसिस और लिवर कैंसर जैसी बीमारियां भी विकसित हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया के 13 से 15 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित होते हैं जिनमें से प्रतिवर्ष सात लाख लोग मौत का शिकार हो जाते हैं।