क्या आप फैटी लिवर की समस्या को टालते जा रहे हैं? या दर्द निवारक दवाओं का चिकित्सक से परामर्श किए बिना इस्तेमाल कर रहे हैं, या फिर अनुचित खानपान और अनियिमत दिनचर्या पर आपका नियंत्रण नहीं है, तो ऐसी तमाम आदतें आपको लिवर संक्रमण या हेपेटाइटिस का जोखिम दे सकती हैं। आइए डॉ. अभिदीप चौधरी (वाइस चेयरमैन, लिवर ट्रांसप्लांटेशन, वीएलके मैक्स अस्पताल, नई दिल्ली) से जानें इस बारे में।
हमारा दिल यदि शरीर में पावर सप्लाई करता है तो लिवर कंप्यूटर में लगे सीपीयू का काम करता है। यदि यह खराब होने लगे तो शरीर के दूसरे अंग या कहें पूरी सेहत खराब हो जाती है। लिवर शरीर के लगभग 500 से अधिक कार्यों में भागीदार होता है।
किसी कारणवश यह 70 प्रतिशत तक खराब हो जाए, तो भी जीवनशैली और खानपान में सुधार कर इसे छह-सात हफ्ते के अंदर पुनः सही किया जा सकता है। विडंबना है कि सबसे अधिक लिवर के साथ ही लापरवाही की जाती है और इससे जुड़ी बीमारियों के कारण हर वर्ष लाखों लोग जान गंवा रहे हैं।
हेपेटाइटिस यानी लिवर में सूजन ऐसी ही जानलेवा बीमारी है, जिससे हमारे देश की बड़ी आबादी ग्रसित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 25.4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-बी से ग्रसत हैं और पांच करोड़ लोगों को हेपेटाइटिस-सी का संक्रमण है। साथ ही, इन बीमारियों के 20 लाख मामले हर साल सामने आते हैं।
चेतावनी है लिवर में सूजन
हेपेटाइटिस यानी लिवर की सूजन खतरनाक समस्या है। आपको इसे एक चेतावनी के रूप लेना चाहिए। यह संक्रमण और किसी अन्य कारण से भी हो सकता है। आमतौर पर वायरल संक्रमण के चलते यह समस्या उत्पन्न होती है। हेपेटाइटिस पांच प्रकार के होते हैं-ए,बी,सी,डी और ई। हेपेटाइटिस डी हेपेटाइटिस बी के साथ आता है।
कई रूपों में आता है हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस ए और ई पानी एवं विषाक्त भोजन के कारण, बी तथा सी रक्त और शारीरिक द्रव में मौजूद संक्रमण के कारण होता है। हेपेटाइटिस ए और ई इस मौसम में सबसे अधिक फैलता है। खानपान में सफाई व सावधानी नहीं होने और दूषित पानी के कारण लोग आसानी से इसके शिकार हो सकते हैं। इसी तरह, ए और सी में इंसान बिल्कुल सामान्य रहता है और अचानक लिवर की बीमारी से वह कोमा में जा सकता है, यानी उसका लिवर पूरी तरह डैमेज हो सकता है।
लिवर की जांच को लेकर रहे सतर्क
लिवर से जुड़ी समस्याओं के स्पष्ट और अलग लक्षण नहीं होने के कारण इसकी समय पर जांच नहीं हो पाती। इससे यह बीमारी अचानक और जानलेवा हो सकती है, इसलिए हेपेटाइटिस ए, बी और सी के लिए बी, सी, डी और ई। हेपेटाइटिस डी हेपेटाइटिस नियमित अंतराल पर रक्त जांच अवश्य करानी बी के साथ आता है। चाहिए। हेपेटाइटिस ए और बी को रोकने के लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है। जन्म के समय शिशुओं को दिया जाने वाला हेपेटाइटिस बी का टीका उनकी मां से फैलने वाले हेपेटाइटिस को रोकता है और हेपेटाइटिस डी से भी बचाव करता है। अगर बचपन में टीका नहीं लगा है, तो 25-30 वर्ष की उम्र तक इसे ले सकते हैं।
समझें रिस्क फैक्टर
जो लोग फैटी लिवर से ग्रसित हैं या जिनका खानपान अव्यवस्थित है, उन्हें संक्रमण होने का जोखिम रहता है। शेविंग के लिए कामन ब्लेड के प्रयोग, टैटू, इंजेक्शन आदि से भी संक्रमण हो सकता है। परिवार में अगर मां को हेपेटाइटिस संक्रमण हुआ हो, तो बच्चों के लिवर की भी जांच अवश्य करा लेनी चाहिए।
लिवर के जोखिम कारक
दूषित खाना और पानी का प्रयोग
वैक्सीन से वंचित रहना
टैटू कराने या दवा प्रयोग के लिए संक्रमित सूई का प्रयोग
अल्कोहल का असुरक्षित सेवन
लिवर से जुड़ी समस्याओं की अनदेखी दर्द निवारक दवाइयों व हर्बल या वेटलास की दवाओं का स्वयं प्रयोग
हेपेटाइटिस के लक्षण
कमजोरी
भूख की कमी
दस्त
पेट में दर्द
गहरे रंग का पेशाब
पीलिया ( त्वचा और आंखों के सफेद भाग का पीला होना)
हालांकि हेपेटाइटिस से ग्रसित कई लोगों को बहुत हल्के लक्षण होते हैं और कई लोगों में लक्षण नहीं दिखते।
बचाव के लिए बदलें जीवनशैली
स्वस्थ आहार जैसे ताजे फल, हरी सब्जियां, लीन प्रोटीन को भोजन में शामिल करें।
प्रोसेस्ड फूड, मीठे पेय पदार्थ, ट्रांस फैट से दूर रहने के प्रयास करें।
लहसुन, हल्दी और ग्रीन टी का प्रयोग करें। ये लिवर में मौजूद विषाक्तता को दूर करने में मदद करते हैं।
अल्कोहल के सेवन में सतर्कता बरतनी चाहिए, ताकि लिवर स्वस्थ रहे।
फिट और सेहतमंद रहने के लिए प्रतिदिन 30 मिनट के व्यायाम का नियम बनाएं। सुविधा अनुसार कसरत और योग कर सकते हैं।
वजन को तय सीमा और नियंत्रण में रखना चाहिए। बढ़ते वजन को नियंत्रित कर आप लिवर समेत अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम से बचे रहेंगे ।
डाक्टर की सलाह के बिना दवाएं और सप्लीमेंट लेने से बचना चाहिए ।
वर्ष में कम से कम एक बार लिवर की जांच अवश्य करानी चाहिए।