महिलाओं में कम उम्र में ‘पीरियड्स’ आना और तय वक्त से पहले ‘मीनोपॉज’ शुरू हो जाना हार्ट अटैकका एक बड़ा कारण बन रहा है। लखनऊ पीजीआई के कार्डिएक सर्जरी विभाग के हेड प्रफेसर निर्मल गुप्ता कहते हैं कि अब महिलाओं में पीरियड्स आने की उम्र 8 साल और उसके बंद होने यानी मीनोपॉज की उम्र 40 साल तक पहुंच रही है। महिलाओं की ओवरी से निकलने वाला ऐस्ट्रोजिन हॉर्मोन उनको दिल की बीमारियों से बचाता है लेकिन समय से पहले मीनोपॉज होने से ऐस्ट्रोजेन हार्मोन कम होने लगता है। नतीजतन कम उम्र में महिलाओं को हार्ट अटैक पड़ने लगा है। साथ ही बिगड़े खान-पान की वजह से भी ऐसा हो रहा है।
लखनऊ मेदांता में वरिष्ठ कार्डियॉलजिस्ट प्रफेसर एस के सरन कहते हैं कि हार्ट अटैक पड़ने के मुख्य कारण डायबीटीज, बीपी और कलेस्ट्रॉल होते हैं, लेकिन इन बीमारियों के बिना भी अब लोगों को हार्ट अटैक हो रहा है। इंटरनैशनल कार्डियोलॉजिकल सोसायटी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पुरुष और महिलाओं में हार्ट अटैक पड़ने की उम्र पश्चिमी देशों की तुलना में 10 साल पहले है। अपने यहां पुरुषों में 45 साल और महिलाओं में 55 साल में हार्ट अटैक पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। प्रफेसर सरन कहते हैं महिलाओं के हॉर्मोन ही उनको दिल की बीमारी से बचाते हैं। जब ये हॉर्मेन कम होने लगते हैं तो उनमें हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। दुबले पतले शरीर के बाद भी हार्ट अटैक का खतरा कम है, ऐसा कतई नहीं है। 50 फीसदी महिलाएं अब छरहरी और बगैर किसी कारण के हार्ट अटैक का शिकार हो रही हैं।
लखनऊ पीजीआई के कॉर्डियॉलजी विभाग के हेड प्रफेसर पी के गोयल के मुताबिक हार्ट अटैक वाले मरीजों में 50 फीसदी ऐसे लोग होते हैं जो एकदम छरहरे बदन वाले होते हैं। महिलाओं में भी यही प्रतिशत होता है। प्रो. गोयल बताते हैं कि हार्ट अटैक पड़ने वालों के घरवालों से जब बात हुई तो उन्होंने बताया कि उनके मरीज को तो कभी कोई ऐसे लक्षण सामने आए ही नहीं थे, बावजूद इसके हार्ट अटैक पड़ गया। वह कहते हैं पीजीआई समेत देश भर के अलग-अलग चिकित्सा संस्थानों में हुई रिसर्च बताती है कि जिन महिलाओं की जान पहले हार्ट अटैक में चली जाती है उनमें से 50 फीसदी को दिल की बीमारी जैसे कभी कोई लक्षण या जानकारी ही सामने नहीं आई होती है।
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