वह प्रभु राम को देखते ही मुनि पहचान गए कि ये तो विष्णु अवतार श्री राम हैं, जो किसी कारणवश मानव शरीर में अवतरित हुए हैं। उन्होंने श्री राम से आने का कारण पूछा। रामचंद्र जी ने कहा -‘हे ऋषि! मैं अपनी सेना सहित राक्षसों को जीतने लंका जा रहा हूं, कृपया आप समुद्र पार करने का कोई उपाय बताइए।’ बकदालभ्य ऋषि बोले- ‘हे राम, फाल्गुन कृष्ण पक्ष में जो ‘विजया एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने से आपकी निश्चित विजय होगी और आप अपनी सेना के साथ समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।’ मुनि के कथनानुसार, रामचंद्र जी ने इस दिन विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत को करने से श्री राम ने लंका पर विजय पायी और माता सीता को प्राप्त किया।
न खाएं जौ-चावल
शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यतानुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। इस दिन एकादशी तिथि ही थी। चावल और जौ के रूप में मेधा ऋषि उत्त्पन्न हुए, इसलिए चावल और जौ को जीव माना गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना, महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है। इस दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विकता का पालन करके श्री हरि का स्मरण करना श्रेष्ठ होता है ।