एकादशी तिथि हिंदू धर्म में खास महत्व रखती है। इसे समस्त पापों का हरण करने वाली तिथि भी कहा जाता है। यह अपने नाम के अनुरूप फल भी देती है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी कहलाती है। इस वर्ष यह 11 फरवरी को पड़ रही है। इस दिन व्रत धारण करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है व जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है।
करें श्री नारायण का ध्यान
शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य मिलता है। इस दिन भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। विजया एकादशी व्रत की पूजा में सप्त धान रखने का विधान है। पूजा से पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान रखें। वेदी पर जल कलश स्थापित कर, आम या अशोक के पत्तों से सजाएं। इस वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पीले पुष्प, ऋतुफल, तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारें। व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं।
भगवान राम को मिली विजय
त्रेता युग में जब रावण माता सीता का हरण करके लंका ले गया, तब प्रभु श्री राम ने लंका प्रस्थान करने का निश्चय किया। जब श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे, तब उन्होंने भयंकर जलीय जीवों से भरे समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से कहा, हे सुमित्रानंदन, किस पुण्य के प्रताप से हम इस समुद्र को पार करेंगे।’ तब लक्ष्मण जी बोले, ‘हे पुरुषोत्तम, आप आदि पुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहां से कुछ दूरी पर बकदालभ्य मुनि का आश्रम है। प्रभु आप उनके पास जाकर उपाय पूछिए।’ लक्ष्मण जी की इस बात से सहमत होकर श्री राम, बकदालभ्य ऋषि के आश्रम गए और उन्हें प्रणाम किया।
वह प्रभु राम को देखते ही मुनि पहचान गए कि ये तो विष्णु अवतार श्री राम हैं, जो किसी कारणवश मानव शरीर में अवतरित हुए हैं। उन्होंने श्री राम से आने का कारण पूछा। रामचंद्र जी ने कहा -‘हे ऋषि! मैं अपनी सेना सहित राक्षसों को जीतने लंका जा रहा हूं, कृपया आप समुद्र पार करने का कोई उपाय बताइए।’ बकदालभ्य ऋषि बोले- ‘हे राम, फाल्गुन कृष्ण पक्ष में जो ‘विजया एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने से आपकी निश्चित विजय होगी और आप अपनी सेना के साथ समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।’ मुनि के कथनानुसार, रामचंद्र जी ने इस दिन विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत को करने से श्री राम ने लंका पर विजय पायी और माता सीता को प्राप्त किया।
न खाएं जौ-चावल
शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यतानुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। इस दिन एकादशी तिथि ही थी। चावल और जौ के रूप में मेधा ऋषि उत्त्पन्न हुए, इसलिए चावल और जौ को जीव माना गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना, महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है। इस दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विकता का पालन करके श्री हरि का स्मरण करना श्रेष्ठ होता है ।