विशाल सिक्का ने इंफोसिस के सीईओ और एमडी पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही इंफोसिस के साथ उनके तीन साल के सफर का अंत हो गया है. इन तीन सालों के दौरान इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति और सिक्का के नेतृत्व वाले इंफोसिस मैनेजमेंट के बीच विवाद सुर्खियों में रहा.जी हां। जल्द ही बाजार में देखने को मिलेंगे 50 और 200 के ये नोट, सोशल मीडिया पर सामने आई नई तस्वीर
अपना इस्तीफा देते हुए विशाल सिक्का ने इन तीन साल के दौरान कंपनी की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि उनके खिलाफ लगे झूठे आरोपों के चलते कंपनी में बतौर सीईओ उनके द्वारा किए गए काम को दरकिनार कर दिया गया है.
गौरतलब है कि सिक्का ने 1 अगस्त 2014 को कंपनी की कमान संभाली. जानिए इन तीन साल के दौरान इंफोसिस की क्या स्थिति है और सिक्का के नेतृत्व में कंपनी कहा से कहा तक पहुंची.
सिक्का के कार्यकाल में इंफोसिस के शेयर की उछाल
सिक्का के कार्यकाल में इंफोसिस के शेयरों को नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के आईटी इंडेक्स पर दूसरी आईटी कंपनियों की तुलना में अच्छी उछाल देखने को मिली. बीते तीन साल के दौरान इंफोसिस के शेयर अपने प्रतिद्वंदी टाटा कंसलटेंसी सर्विस और विप्रो से बेहतर प्रदर्शन पर रहे. हालांकि इंफोसिस से बेहतर प्रदर्शन एचसीएल टेक्नोलॉजी के शेयरों का रहा. सिक्का के कार्यकाल के दौरान इंफोसिस के शेयरों में 13 फीसदी की ग्रोथ दर्ज हुई है. यह छलांग सिक्का के इस्तीफे से शेयर में आई जोरदार गिरावट के पहले तक है.
इंफोसिस को सिक्का ने दी डबल डिजिट ग्रोथ
कंपनी की वार्षिक रेवेन्यू में सीईओ सिक्का के तीन साल के कार्यकाल के दौरान 11 फीसदी की उछाल देखने को मिली. सिक्का ने अपने रेजिग्नेशन लेटर में लिखा कि वह आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस में अपनी महारत के चलते कंपनी को आगे बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर बड़े बदलाव के लिए तैयार कर पाए. सिक्का के कार्यकाल में इंफोसिस ने वैश्विक स्तर पर ब्रेक्जिट, डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव और जीएसटी लागू होने से उभरी चुनौती के बावजूद मजबूत ग्रोथ ट्रैजेक्टरी पर रही.
कंपनी को हुआ डबल डिजिट में मुनाफा
सिक्का के कार्यकाल के दौरान इंफोसिस के मुनाफे में वार्षिक वृद्धि 105 फीसदी की रही. वहीं जहां वित्त वर्ष 2014 में कंपनी का मार्जिन 23.9 फीसदी था, 2017 में वह बढ़कर 24.7 फीसदी पर पहुंच गया. सिक्का के कार्यकाल के दौरान कंपनी के पास बड़ी मात्रा में कैश और अन्य लघु निवेश अपलब्ध हैं. इंफोसिस के इसी कैश उपलब्धता के चलते कंपनी के प्रमोटर और मनैजमेंट में विवाद शुरू हुआ. प्रमोटरों का मानना था कि कंपनी को अत्यधिक कैश का इस्तेमाल शेयरधारकों से शेयर खरीदने में करना चाहिए. इस मामले पर शनिवार को इंफोसिस बोर्ड को फैसला करना है.