साधारण लोगों के उस विश्वास की पुन: प्रतिष्ठा है कि अच्छे कर्म सदा साथ रहते हैं और उन्हें अर्जित किए जाने के समय के संघर्ष और श्रम का मोल एक दिन चुकाते अवश्य हैं। निर्मम राजनीति कुर्सी पर नहीं तो ह्दय से भी ओझल की अनीति पर चलती है लेकिन यदि वह भी 11 वर्षों तक अनदेखे, अनसुने व्यक्ति को अंतिम विदा देने दौड़ पड़े तो यह केवल तभी संभव है जब जाने वाला अटल बिहारी वाजपेयी हो-अजातशत्रु।
पिछला पूरा सप्ताह अटल की अस्थियों के आने की गहमागहमी और विसर्जन में बीता। अभी-अभी तरुण हुई एक पूरी पीढ़ी के लिए इस दृश्य में कौतुक तो था लेकिन, इसने उनमें जीवन की भद्रता, सहजता और सरलता के प्रति सम्मान के बीज भी रोपे। राज्य में सरकार तो भारतीय जनता पार्टी की ही है लेकिन, जब गोमती नदी के तट पर विपक्ष के अब भी सबसे बड़े चेहरे मुलायम सिंह यह कहने लगें कि, अटल जी उन्हें बहुत प्यार करते थे’ तो दलों की सीमाएं जाने कहां बिला जाती हैं।
लखनऊ के बाद अस्थिकलश अन्य शहरों को भेज दिए गए जहां उनका विसर्जन हुआ। अटल के नाम पर विभिन्न सरकारी योजनाओं, सड़कों और संस्थानों के नामकरण का क्रम भी जारी है। लगभग आधी सदी तक अटल के बहुत निकट रहे लालजी टंडन को बिहार का राज्यपाल भी बना दिया गया। स्पष्ट है कि इस बार 25 दिसंबर को अटल की पहली जयंती भाजपा और सरकार द्वारा बहुत समारोह पूर्वक मनायी जानी है।
इसके बीच सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की अचानक कही गई एक बात ने सबका ध्यान खींचा। अखिलेश यादव के पास इटावा में दो हजार एकड़ भूमि है जिस पर उन्होंने अगली बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनने पर भगवान विष्णु का विशाल मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। यह मंदिर कम्बोडिया के अंकोरवाट जैसा होगा। प्रतिक्रिया भी अपेक्षानुसार ही हुई। कुछ ने समर्थन किया तो कुछ ने यह भी पूछ डाला कि यदि मंदिरों से इतना ही प्रेम है तो अयोध्या वाले मंदिर का विरोध क्यों कर रहे। तय मानिए, कुछ महीनों बाद सपा-भाजपा दोनों ही तरफ से इस मुद्दे पर रोचक संवाद सुनने को मिलने वाला है। हालांकि अखिलेश यादव के लिए एक अन्य विषय सुखद नहीं रहा। लखनऊ के अति वीआइपी क्षेत्र में जहां अखिलेश अपना एक होटल बनाने वाले थे, उस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। इस मामले में खास बात अदालत का अपना रुख रहा। होटल निर्माण को चुनौती देती एक जनहित याचिका दायर हुई थी लेकिन, याची के यह कहने पर कि उसे धमकियां मिल रही हैं, कोर्ट ने पूरे प्रकरण का स्वत:संज्ञान ले लिया। यानी अब याची याचिका वापस भी ले ले तो भी मुकदमा आखिर तक जाना ही है।
उत्तर प्रदेश की एक और घटना पिछले हफ्ते चर्चा में रही। 15 अगस्त को महाराजगंज के एक मदरसे में शिक्षकों ने राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया था। इसका वीडियो जारी हुआ तो बात तूल पकड़ गई और सरकार पर कार्रवाई का दबाव पडऩे लगा। पिछले हफ्ते सरकार ने मदरसे की मान्यता निलंबित कर दी। मदरसे में और भी कई गड़बडिय़ां मिलीं और माना जा रहा है कि जल्दी ही उसकी मान्यता रद भी कर दी जाएगी। बेशक, राष्ट्रगान के अपमान पर ऐसी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए जिसमें दूसरों के लिए भी साफ संदेश छिपा हो।
पिछला सप्ताह जाते जाते उत्तर प्रदेश के लिए दो बड़ी खुशखबरियां भी लाया। अभी तक खेलों की दुनिया में पंजाब, हरियाणा और दक्षिणी प्रदेशों का बोलबाला रहता आया है लेकिन, इन दिनों चल रहे जकार्ता एशियन गेम्स में उत्तर प्रदेश के कई खिलाडिय़ों ने नाम रौशन किया। कुश्ती की गोल्ड मेडल विजेता विनेश फोगाट यूं तो हरियाणा की हैं लेकिन, उन्होंने प्रशिक्षण स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के लखनऊ सेंटर में लिया। स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्होंने चुटकी भी ली कि ‘मैं लखनऊ की चक्की में पिसा आटा खाती हूं।’ मेरठ ने तो इस बार बड़ा कमाल कर दिखाया। अपने खेल सामान और पाकेट बुक्स कारोबार के लिए प्रसिद्ध यह शहर पहले भी खेलों में आगे रहा है लेकिन, इस बार वहां के युवा खिलाडिय़ों ने अभी तक निशानेबाजी में स्वर्ण और रजत पदक जीते जबकि एथलेटिक्स में भी उससे भरपूर उम्मीदें हैं।