लखनऊ: वट सावित्री व्रत का पूजन आज गुरुवार को किया जाएगा. इस व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. लेकिन इस 25 मई को ऐसा महासंयोग बन रहा है, ऐसा महासंयोग सदियों में कभी-कभार ही बनते हैं. इस बार के वट सावित्री व्रत के साथ ही शनि जयंती व स्नान, दान अमावस्या भी पड़ रहे हैं.
जिसकी वजह से ये तिथि बहुत मंगलकारी बन गई है. इस तिथि में पूरे देश में एक तरफ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना करेंगी वहीं न्याय के देवता शनिदेव के भक्त शनि जयंती मना रहे होंगे. शनि भक्त उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करेंगे. यही नहीं 25 मई से नौतपा भी शुरू हो रहा है. इन तीनों का संयोग कई सालों बाद बना है.
नौतपा 25 मई से दो जून तक रहेगा. इस दिन शनि देव के पिता सूर्यदेव अपने प्रचंड रूप में आते हैं. नौ दिनों में सूर्य पृथ्वी के नजदीक आकर पूरा वातावरण गर्म कर देते हैं. सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ ही नौतपा शुरू हो जाएगा.
वट सावित्री व्रत पूजन और मान्यता
इस व्रत में महिलाएं 108 बार बरगद की परिक्रमा कर पूजा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि गुरुवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक होता है. मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस ले लिया था. इस दिन महिलाएं सुबह से स्नान कर लेती हैं और श्रृंगार करती हैं. इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने के बाद ही सुहागन को जल ग्रहण करना चाहिए.
वट का मतलब बरगद का पेड़ होता है. हिंदू पुराण में बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है. मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शिव ऊपरी भाग में रहते हैं. यही वजह है कि यह माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है.
हिंदू धर्म में इस व्रत से जुड़े पूजन को लेकर भी कई तरह की मान्यताएं हैं. मान्यता के अनुसार इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल अर्पण करती हैं और हल्दी का तिलक, सिंदूर और चंदन का लेप लगाती हैं. पेड़ को फल-फूल अर्पित करते है.
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