देश के हर जिले में शरीयत अदालतें बनाने को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दिए गए प्रस्ताव पर कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि देश में समानांतर सिस्टम बनाना संविधान की मंशा के खिलाफ है
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से देश के हर जिले में शरीयत अदालतें बनाने को लेकर दिए गए प्रस्ताव पर कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी का कहना है कि यह आपस में समझौता करने वाली बात है. अगर ऐसी शरियत अदालतों पर कोई फैसला आता है, फिर इसको लेकर कोई एक पार्टी राजी नहीं होती तो उसको मजबूर नहीं किया जा सकता. अगर दोनों पार्टियां सहमत हैं तो फिर कोर्ट की जरूरत ही नहीं रहेगी.
उन्होंने कहा कि अगर मीडिएशन सेंटर है तो यह अलग बात है. जब आप कोर्ट की बात करते हैं तो कानूनीतौर से बात करते हैं ऐसे कोर्ट के फैसले कानूनी तौर से बाध्य नहीं कर सकते. बाध्यता केवल कोर्ट के द्वारा ही हो सकता है. संविधान के द्वारा ही मान्य होगा और जो कानून बनाने की बात है. किसी भी तरह की अदालतें बनने की बात है तो वह संसद और विधानसभाओं के द्वारा ही होता है. उनके द्वारा जो कोर्ट बनती है उनको ही को माना जाता है.
पीपी चौधरी का कहना है कि भारत के संविधान में स्पष्ट तौर से कहा गया है कि कोई भी कानून संविधान के मुताबिक होगा. इसके अलावा जो कानून होगा उसका कोई औचित्य नहीं होगा. इसी तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक का मुद्दा आया था. भारत का संविधान सभी को समान संरक्षण देता है. इसी तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि तीन तलाक गलत है, न्याय नहीं अन्याय है.
कुछ मुस्लिम संगठनों की ओर से शरीयत अदालतों के समर्थन की बात पर पीपी चौधरी ने कहा, ‘मैं कानूनी तौर से बात करता हूं और समर्थन करना कानूनी तौर पर मान्य होना चाहिए. जो हमारी अदालतें हैं उनका ही फैसला मान्य होगा. हिंदू हो या मुसलमान या फिर कोई भी हो, देश के अंदर हर तरीके के मामले को सुलझाने के लिए संविधान बना हुआ है, सब कुछ उसके पैरामीटर के अनुसार ही होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई समानांतर सिस्टम बनाना चाहते हैं तो वह संविधान की मंशा के खिलाफ है. इस तरीके के अदालतें नहीं बनाई जा सकती क्योंकि यह कानून उसे बाध्य नहीं करते हैं.