धर्मनगरी चित्रकूट के रामघाट के पास स्थित मत्यग्येंद्रनाथ (शिवलिंग) का वर्णन शिवपुराण में भी है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था। यज्ञ के प्रभाव से निकले शिवलिंग को स्वामी मत्यग्येंद्रनाथ के नाम से जाना जाता है। आज भी सुदूर क्षेत्र से श्रद्धालु आकर जलाभिषेेक करते हैं। सावन में तो श्रद्धालुओं की उमड़ती है। अगर आप करेंगे सच्चे मन से सेवा तो भगवान भी दर्शन देने को हो जाएंगे मजबूर
भगवान श्रीराम की वनवास स्थली चित्रकूट में अत्यंत प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है। रामघाट के पास स्थित मत्यग्येंद्रनाथ जी का मंदिर भी प्राचीन है। इसमें स्थापित शिवलिंग का शिवपुराण में कुछ इस प्रकार वर्णन है।
नायविंत समोदेशी नब्रम्ह सद्दशी पूरी।
यज्ञवेदी स्थितातत्र त्रिशद्धनुष मायता।।
शर्तअष्टोत्तरं कुण्ड ब्राम्हणां काल्पितं पुरा।
धताचकार विधिवच्छत् यज्ञम् खण्डितम्।।
अर्थात ब्रह्मा जी ने 30 धनुष के आयात में जगह लेकर 108 कुंड बनाकर यज्ञ किया था। फलस्वरूप उन्हें शिवलिंग प्राप्त हुए, वही शिवलिंग मंदिर में स्थापित हैं। त्रेता युग में जब भगवान राम वनवास के लिए चित्रकूट आए तो इन्हीं से आज्ञा लेकर चित्रकूट में साढ़े 11 वर्ष व्यतीत किए।
मंदिर के पुजारी पं. विपिन तिवारी बताते हैं कि शिवपुराण के अष्टम खंड के दूसरे अध्याय मे मत्यग्येंद्र लिंग के बारे में वर्णन है। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की आज्ञा पर चित्रकूट के पवित्र पर्वत पर यज्ञ किया था, जिसमें शिवलिंग निकला। वही शिवलिंग मंदिर में स्थापित है। यहां जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। बताया कि जो मनुष्य प्रात: काल मंदाकिनी में स्नान कर मत्यग्येंद्रनाथ का पूजन करता है, उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं।