तिलों का भारतीय संस्कृति से गहरा रिश्ता है। काले तिल तो वर्ष भर होने वाले कर्मकांड में काम आते हैं। विशेष रूप से पितृ श्राद्ध आदि कर्म काले तिलों के बगैर संपन्न नहीं होते। सफेद तिलों का प्रयोग देश में बनने वाले अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है। इस प्रकार सफेद तिलों के पर्व संकटा चतुर्थी से प्रारंभ होंगे। यह चतुर्थी शुक्रवार को पड़ रही है।
इस महिलाएं अपने संतान के लिए मां संकटाभवानी की पूजा व्रत रखकर करती हैं। सायंकाल सफेद तिल और बूरा मिलाकर तिलकुट बनाया जाता है। इसी तिलकुट को पकवान के साथ मिष्ठान्न के रूप में प्रयोग किया जाएगा। सायंकाल दीप जलाकर महिलाएं भोजन ग्रहण करेंगी।
12 जनवरी को शटतिला एकादशी पड़ रही है। इस एकादशी पर व्रत रखकर तिलदान किया जाता है। अगले दिन 13 जनवरी का लोहड़ी का पर्व पड़ेगा, जो तिल खाने और जलाने का पर्व है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी भोजन का आयोजन किया जाता है और मीठे की जगह तिल से बने लड्डू परोसे जाते हैं।
17 जनवरी को मौनी अमावस्या का स्थान होगा और तिले से बने पदार्थों का दान किया जाएगा। इस प्रकार होली तक अनेक तिल पर्व आते रहेंगे। मान्यता है कि मकर में आने से पूर्व जैसे-जैसे सूर्य की दक्षिणायन यात्रा बढ़ती जाती है ठंड बढ़ती है। किंतु मकर में आने के बाद सूर्य के उत्तरायण होती ही ठंड में फर्क पड़ने लगता है।
शास्त्री मान्यता है कि यह फर्क तिलों के फटकने के साथ शुरु हो जाता है। तिल पर्वों पर जब अग्नि को तिल अर्पित किए जाते हैं तब तिलों के फटकने से ग्रीष्म ऋतु तिल-तिल आगे बढ़ती है। यही कारण है कि कड़ाके की ठंड लाने वाला 40 दिनों का चिल्ला भी आखिरी दिनों में धीमा पड़ जाता है। भारतीय संस्कृति में तिल पर्वों का बड़ा भारी महत्व बताया गया है। तिल वास्तव में धन सम्पदा बढ़ाने के लिए दान के माध्यम से प्रयोग किए जाते हैं।