सपा-बसपा की 'डील' का पूरा सच, UP में हुए गठबंधन का MP तक दिखेगा असर

सपा-बसपा की ‘डील’ का पूरा सच, UP में हुए गठबंधन का MP तक दिखेगा असर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के विजय रथ को रोकने की कवायद उत्तर प्रदेश से शुरू हो रही है. 23 साल से एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाली सपा और बसपा सारी दुश्मनी भुलाकर साथ आ गई हैं. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिए मायावती ने अखिलेश यादव के सपा उम्मीदवार को समर्थन देने का एलान किया है. वहीं अखिलेश यादव इसके बदले मायावती को राज्यसभा का रिटर्न गिफ्ट दे सकते हैं.सपा-बसपा की 'डील' का पूरा सच, UP में हुए गठबंधन का MP तक दिखेगा असर

सपा-बसपा का करीब आना किसी अजूबे से कम नहीं

बीएसपी और समाजवादी पार्टी का यूं करीब आना यूपी की राजनीति के लिए बड़ी बात है. हालांकि इसके संकेत तो पिछले साल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही मिलने लगे थे जिसमें बीजेपी ने इन दोनों पार्टियों को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया था.

वैसे सपा और बसपा की दुश्मनी कोई ऐसी-वैसी नहीं थी. 1995 में गेस्ट हाउस कांड में जो कुछ हुआ, उसके बाद दोनों दलों का यूं करीब आना अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं .

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को मात देने के लिए सपा उम्मीदवारों को बसपा समर्थन करेगी. इसके अलावा बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कहा है कि राज्यसभा चुनाव में बीएसपी को सपा समर्थन करेगी और इसके बदले पार्टी एसपी को विधान परिषद में मदद करेगी.

मायावती-अखिलेश में नहीं हुई बात

सपा और बसपा के बीच समझौते की कवायद 27 फरवरी से की जा रही थी. 6 दिन की मशक्कत और दोनों ही दलों के नेताओं के बीच व्यापक बातचीत के बाद इसका ऐलान किया गया. हालांकि मायावती और अखिलेश यादव के बीच आपस में बात नहीं हुई है. सूत्रों की मानें तो सिर्फ सपा के महासचिव रामगोपाल यादव और बसपा के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा के बीच ही बातचीत हुई है. इसके बाद मायावती और अखिलेश यादव ने सिर्फ हरी झंडी दी, जिसके बाद ऐलान किया गया.

मायावती ने राज्यसभा से दिया था इस्तीफा

बता दें कि पिछले साल जुलाई में मायावती ने सहारनपुर मामले की वजह से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उनका कार्यकाल इस साल अप्रैल को खत्म हो रहा है. यूपी की 10 राज्यसभा की सीटों पर 23 मार्च को चुनाव होने हैं, इसमें मायावती की सीट भी शामिल है. विपक्षी दलों में सपा को छोड़कर बाकी कोई दल अपने बूते किसी को राज्यसभा भेजने की हैसियत में नहीं है 

राज्यसभा पहुंचने के लिए कम से कम 37 वोटों की जरूरत होगी. बीजेपी आसानी से अपने 8 उम्मीदवार को जिताने की ताकत रखती है. सपा के पास 47 विधायक हैं. मायावती के 19 विधायकों के साथ मिलाकर 66 तक संख्या पहुंचती है. 7 विधायक कांग्रेस के पास भी हैं, जिन्हें मिलाकर विपक्ष के पास 73 वोट हो रहे हैं. ऐसे में सपा एक सीट आसानी से जीत जाएगी और पूरा विपक्ष मिलकर दूसरे के लिए जोर आजमाइश करेगा.

विपक्ष को चाहिए कितने वोट

विपक्ष को दूसरे संयुक्त उम्मीदवार के लिए तीन-चार विधायकों की जरूरत पड़ेगी. ऐसे में 10वीं सीट के लिए लड़ाई तय मानी जा रही है. क्योंकि निर्दलीयों के समर्थन सहित अपने 8 राज्यसभा सदस्य जिताने के बाद भी बीजेपी के पास करीब 32 वोट दूसरी सीट के लिए बचेंगे. विपक्ष के पास भी करीब इतने ही वोट होंगे. ऐसे में दूसरी सीट के लिए दिलचस्प मुकाबला होगा.

मायावती ने यूपी से एमपी तक चलाया तीर

मायावती ने इस दांव के जरिए कांग्रेस पर भी दबाव बनाया है. ‘एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले’ की बात कहकर मायावती ने ये साफ कर दिया है. कांग्रेस की मजबूरी है कि लोकसभा में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए वो दोनों से ज्यादा दूर नहीं जा सकती. राज्यसभा में कांग्रेस के 7 विधायकों के समर्थन के लिए दबाव बनाते हुए मायावती ने कहा है कि जब हमें यूपी में समर्थन मिलेगा, तभी एमपी में बीएसपी राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देगी. 

भाई आनंद कुमार को भेज सकती हैं राज्यसभा

मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजने का ऑफर आरजेडी ने दिया था. पर प्रदेश छोड़ना उन्हें गवारा नहीं था. ऐसे में उन्होंने अपनी सियासी कद को बचाए रखने के लिए सबसे मुफीद सपा लगी. ऐसे में वो सपा को एक हाथ से दे रही हैं दूसरी हाथ से ले रही हैं. ये भी चर्चा है कि मायावती अपनी जगह भाई आनंद कुमार को भी राज्यसभा भेज सकती हैं.

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