रूस की कई पनडुब्बियां नाटकीय रूप से उत्तरी अटलांटिक में समंदर के नीचे मौजूद डाटा केबल के पास गश्त कर रही हैं। इन केबल से ही अमेरिका और यूरोपीय देशों का इंटरनेट और संचार का डाटा गुजरता है। इसलिए रूस की हरकत से अमेरिका समेत सभी नाटो देशों में बेचैनी बढ़ गई है। उन्हें डर है कि इन केबल से रूस उनका संवेदनशील डाटा चुरा सकता है। 
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अमेरिकी नौसेना के एडमिरल एंड्र लेनन के मुताबिक रूस की नौसेना का यह कदम बेहद आक्रामक है।
इससे नाटो को भी उस क्षेत्र में अपनी पोस्ट मजबूत करनी होगी। यह एकदम शीत युद्ध जैसी स्थिति होगी। शीत युद्ध के बाद रूसी पनडुब्बियां यहां कभी नहीं आई थीं। एंड्रू के मुताबिक रूस नाटो देशों और नाटो देशों के समंदर के नीचे मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर में बेहद दिलचस्पी ले रहा है। ब्रिटेन की सेना के कमांडरों ने भी चेतावनी दी है कि रूस इन केबल को संकट में डाल सकता है। यह आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 1858 में डाली गई पहली टेलीग्राफ वायर के साथ ही यहां कई निजी इंटरनेट और संचार की लाइन हैं। अगर रूस ने इन लाइन को काट दिया तो इंटरनेट बंद हो सकता है और अगर उन्होंने इसमें सेंध लगाई तो रूस को विश्व इंटरनेट ट्रैफिक का डाटा मिल जाएगा।
आसमान और जमीन पर भी नाटो को चुनौती
ब्रिटिश एयर चीफ मार्शल स्टुअर्ट पिच के मुताबिक रूस यहां सक्रिय है और यह खतरनाक है। सोचिए अगर रूस केबल को नुकसान पहुंचाता है तो क्या होगा। अर्थव्यवस्था के साथ ही हमारी रोजमर्रा की जिंदगी भी बाधित हो जाएगी।
रूस सिर्फ समंदर में अति सक्रिय नहीं है। क्रेमलिन आसमान और जमीन पर भी लगातार नाटो को चुनौती दे रहा है। बाल्टिक क्षेत्र में रूस के युद्धक विमान लगातार नाटो की वायु सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं। वहीं इस सात सितंबर में जमीनी सेना ने नाटो सीमा के नजदीक ड्रिल की थी।
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