अस्पतालों में विशेषज्ञ की कमी को दूर करने के लिए अस्पतालों में डीएनबी पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद शुरू हुई है। इससे अस्पतालों को रेजीडेंट डॉक्टर भी मिल जाएंगे।
गौरतलब है कि नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (एनबीई) के डीएनबी पाठ्यक्रम को एमडी और एमएस के बराबर ही मान्यता है। एनबीई अपने मानकों के आधार पर अस्पतालों का चयन करता है।
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अस्पतालों में अनुभवी शिक्षकों के आधार पर ही डीएनबी के लिए सीटों का आवंटन होता है। एमडी-एमएस की तरह ही डीएनबी तीन वर्ष का पाठ्यक्रम है और एमबीबीएस करने के बाद यह कोर्स विशेषज्ञता के लिए किया जाता है। इसमें भी डॉक्टर को मेडिकल कॉलेजों की तरह ही पढ़ाई होती है।
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इस समय लोहिया अस्पताल में मेडिसिन, एनेस्थीसिया और सर्जरी में एक-एक डीएनबी की सीट है। अस्पताल के शिक्षकों के साथ-साथ केजीएमयू के ख्याति प्राप्त रिटायर्ड सर्जन प्रो. टीसी गोयल, न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ प्रो. अतुल अग्रवाल और एक अन्य मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ भी छात्रों को पढ़ाते हैं। लोहिया अस्पताल प्रदेश का पहला एनएबीएच (नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड ऑफ हॉस्पिटल) का प्रमाण पत्र पाने का अस्पताल बना था।
विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए जिला व अन्य बड़े सरकारी अस्पतालों में डीएनबी पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद हो रही है। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के साथ 24 को वीडियो कांफ्रेंसिंग भी होनी है। लोहिया अस्पताल के रूप में हमारे पास मॉडल अस्पताल हैं। बलरामपुर सहित कई मंडलीय अस्पताल भी पाठ्यक्रम के मानक पूरे करते हैं।- प्रो. वीएन त्रिपाठी महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा