बैंगलुरू। सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को एक फैसला सुनाया है जिसमें उसने प्रमोशन में मिलने वाले रिजर्वेशन कोटे को खत्म कर दिया है। जिसका सबसे बुरा असर कर्नाटक के दस हजार सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा जहां इस आधार पर उनका डिमोशन किया जाएगा। इस फैसले के बाद से अब उन्हे नौकरी में प्रमोशन के लिए आरक्षण नहीं मिल पाएगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी किये गए इस आदेश को चुनौती देने के लिए कांग्रेस मैदान में आ चुकी है। कांग्रेस की यह चाल आगामी 2018 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चली गयी है।कर्नाटक कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने इस फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि यह बेहद संवेदनशील मामला है। उन्होंने कहा है कि कोर्ट का यह आदेश पूर्णतः दलित विरोधी है और यदि हम दलितों के साथ खड़े नहीं हुए तो हम पर दलित-विरोधी होने का आरोप लग जाएगा। जिससे आगामी विधानसभा चुनाव खतरे में पड़ सकता है। हांलाकि मामले पर अभी आखिरी फैसला नहीं लिया गया है।
कोर्ट के इस फैसले पर बात करते हुए कर्नाटक राज्य के कर्मचारी संघ के अध्यक्ष बी पी मंजे गौड़ा ने बताया कि कर्नाटक में कुल 65 डिपार्टमेंट की 18 प्रतिशत पोस्ट SC-ST लोगों के लिए आरक्षित थी। जिसमें कुल 5.15 लाख सरकारी कर्मचारियों में से 1-2 प्रतिशत ही ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिला होगा। इस फैसले के तहत राज्य के लगभग 7,000-10,000 अफसरों और कर्मचारियों को निचली रैंक पर लाया जाएगा। लेकिन एसोशिएशन ने दलित लोगों के लिए खड़े होने से इंकार कर दिया है।
कानून और संसदीय मामलों के मंत्री टी बी जयचंद्र ने बताया कि सरकार अभी अकाउंटेंट जनरल से बात कर रही है कि इस मामले में क्या किया जा सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 फरवरी को फैसला सुनाया था कि 1978 से अभी तक जिन एससी/एसटी कर्मचारियों को मिला प्रमोशन आरक्षण के आधार पर था उसको खत्म कर दिया गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कर्मचारियों को डिमोट करने के लिए तीन महीने का वक्त भी दिया था।