सरकार की तरफ से कहा गया है कि राफेल सौदे के मूल्य और ब्योरे को सार्वजनिक किए जाने की मांग की जा रही है जो मुमकिन नहीं है। गोपनीयता की शर्तों के मुताबिक, यूपीए सरकार ने भी कई रक्षा सौदों का ब्योरा सार्वजनिक करने में असहमति जताई थी। संसद में पूछे गए सवालों पर भी यही रुख अपनाया था।
सरकार ने कहा है कि राफेल विमान की मोटे तौर की लागत की जानकारी संसद को दी जा चुकी है। आइटम के लिहाज से लागत और अन्य सूचनाएं बताने पर वे सूचनाएं भी आम हो जाएंगी, जिनके तहत इन विमानों का कस्टमाइजेशन और वेपन सिस्टम से लैस किया जाएगा।
यह काम विशेष तौर पर मारक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। अगर इनका खुलासा हुआ तो सैन्य तैयारियों पर असर पड़ेगा। इस तरह ब्यौरे 2008 में साइन किए गए सुरक्षा समझौते के दायरे में भी आएंगे। कॉन्ट्रैक्ट के ब्यौरे के आइटम के हिसाब से आम न करके सरकार भारत और फ्रांस के बीच हुए उस समझौते का पालन भर कर रही है, जिस पर पिछली सरकार ने हस्ताक्षर किए थे।
बता दें कि 36 राफेल विमानों के लिए 2016 में भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच समझौता हुआ था। कांग्रेस इस डील पर सवाल उठा रही है।
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