नोटबंदी के बाद से काले धन पर अंकुश लगाने के लिए मोदी सरकार ने आयकर विभाग को हर दिशा निर्देश दे दिए हैं। आयकर विभाग भी बैंकों के साथ मिलकर अकाउंट में जमा हुई रकम की हर पड़ताल करने में लगी है। हालांकि अब खबर आ रही है कि 2016-17 में संदिग्ध ट्रांजेक्शंस में 6 गुना का इजाफा हुआ है।
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आमतौर पर एक-दूसरे से व्यक्तिगत लेन-देन 10 लाख रुपये तक रहता है तो कोई बात नहीं। लेकिन, इससे अधिक का आंकड़ा होने पर इसे संदिग्ध मानते हुए पड़ताल की जाती है। संदिग्ध लेनदेन का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है अन्य कई आधारों पर भी वित्तीय संस्थान किसी ट्रांजैक्शन को संदिग्ध मानते हुए सवाल खड़े कर सकती हैं।
– आमतौर पर जमा की जाने वाली राशि के मुकाबले बहुत अधिक रकम जमा होना।
– व्यक्ति की फाइनेंशल स्टैंडिग की तुलना में अप्रत्याशित रूप से अधिक लेन-देन।
– पिछले ट्रांजेक्शंस के मुकाबले एक दम अलग ऐक्टिविटी।
– निष्क्रिय खाते में अचानक राशि जमा होना।
– घोषित कारोबार के मुकाबले अचानक बड़ी राशि जमा होना।
– बिना वाजिब तर्क के एक ही व्यक्ति के कई अकाउंट होना। उसका इंट्रोड्यूसर होना या फिर अधिकृत हस्ताक्षरी होना।
– बिना किसी उचित कारण या तर्क के कई खातों में रकम का ट्रांसफर होना।
– फंड के स्रोत का संदिग्ध होना।
– इनसाइडर ट्रे़डिंग का मामला होना।
– इन्वेस्टमेंट की रकम थर्ड पार्टी को ट्रांसफर होना।
– मार्केट में जोड़-तोड़ का संकेत।
– विदेश से किसी खाते में बड़ी रकम का पेमेंट के मकसद से ट्रांसफर होना।
– क्लाइंट के पेमेंट पैटर्न में अस्थिरता या बड़ा उतार-चढ़ाव।
– ब्लॉक डील। यानी मार्केट के मुकाबले बहुत अधिक या कम दाम में खरीद-फरोख्त।
– अन्य स्थापित कारोबारों से मिलते-जुलते नामों से अकाउंट खुलवाना।
– सही समय पर डॉक्युमेंट्स का वेरिफिकेशन न हो पाना।
– नॉन-फेस टू फेस क्लाइंट।
– अकाउंट के असली लाभार्थी को लेकर संदेह होना।
– पहचान के लिए गलत दस्तावेज जमा होना।