गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजी एडवाइजरी में कहा कि राष्ट्रीय ध्वज देश के लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतीक है। इसलिए इसे सम्मान का स्थान मिलना चाहिए। मंत्रालय ने कहा, यह देखने में आया है कि महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के अवसर पर कागज के झंडों के स्थान पर प्लास्टिक के बने झंडों को प्रयोग में लाया जाता है।
एडवाइजरी में कहा गया है कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और खेल के कार्यक्रमों में फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002 के प्रावधानों का ध्यान रखते हुए लोगों को सिर्फ कागज के बने झंडों का ही प्रयोग करना चाहिए। कार्यक्रम के बाद ऐसे कागज के झंडों को जमीन पर नहीं छोड़ या फेंका जाना चाहिए। एडवाइजरी के मुताबिक प्लास्टिक के झंडे कागज की तरह जैविक रूप से खुद-ब-खुद नष्ट नहीं होते हैं और वातारवरण के लिए हानिकारक होते हैं। प्लास्टिक से बने झंडों का सम्मानपूर्वक उचित निपटान सुनिश्चित करना एक समस्या है।
राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 के अनुसार, ‘कोई भी व्यक्ति जो किसी सार्वजनिक स्थान पर या किसी भी अन्य स्थान पर सार्वजनिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय झंडे या उसके किसी भाग को जलाता है, विकृत करता है, विरूपित करता है, दूषित करता है, कुरूपित करता है, नष्ट करता है, कुचलता है या उसके प्रति अनादर प्रकट करता है या (मौखिक या लिखित शब्दों में, या कृत्यों द्वारा) अपमान करता है तो उसे तीन वर्ष तक के कारावास से, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।’
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