पाकिस्तान के सिंधु डेल्टा पर मौजूद गांव को छोड़ने से पहले हबीबुल्लाह खट्टी अपनी मां को अंतिम विदाई देने के लिए उनकी कब्र पर जा रहे हैं।
यह वह इलाका है जहां सिंधु नदी अरब सागर में मिलती है। यहां मौजूद डेल्टा में समुद्र के जल की एंट्री किसानों और मछुआरों के पतन का कारण बना।
हबीबुल्लाब खट्टी ने एएफपी से बात करते हुए बताया कि खारो चान कस्बे के अब्दुल्ला मीरबहार गांव से लगभग 15 किलोमीटर दूर तक हमें खारे पानी ने घेर लिया है।
इसी वजह से यहां मछली पकड़ने के काम में कमी आई हमने सिलाई का काम शुरू कर दिया लेकिन अब यह भी मुश्किल हो गया है क्योंकि 150 घरों में से केवल चार ही बचे हैं।
खट्टी के मुताबिक, शाम के समय इलाके में अजीब-सा सन्नाटा छा जाता है, आवारा कुत्ते खाली पड़े लकड़ी और बांस के बने घरों में घूमते हैं। खारो चान में लगभग 40 गांव थे लेकिन समुद्र के बढ़ते पानी के कारण सब गायब हो गए हैं।
सिंधु डेल्टा क्षेत्र से 12 लाख से ज्यादा लोगों ने किया पलायन
आंकड़ों के मुताबिक, शहर की आबादी 1981 में 26,000 से घटकर 2023 में 11,000 रह गई है। खारो चान कस्बे से खट्टी अब अपने परिवार को कराची ले जाने की तैयारी कर रहे हैं, जो आर्थिक रूप से पाकिस्तान का बड़ा शहर है।
मछुआरा समुदायों के लिए काम करने वाले पाकिस्तान फिशरफोक फोरम का अनुमान है कि डेल्टा के तटीय जिलों से हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
हालांकि, पूर्व जलवायु परिवर्तन मंत्री के नेतृत्व वाले थिंक टैंक, जिन्ना इंस्टीट्यूट की ओर से मार्च में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, पिछले दो दशकों में पूरे सिंधु डेल्टा क्षेत्र से 12 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं।
80 फीसदी कम हुआ पानी का बहाव
यूएस-पाकिस्तान सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज इन वाटर के 2018 में किए गए एक स्टडी के मुताबिक, सिंचाई नहरों, जलविद्युत बांधों और जलवायु परिवर्तन के हिमनदों और बर्फ पिघलने पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण 1950 के दशक से डेल्टा में पानी का बहाव 80 प्रतिशत कम हो गया है। इससे समुद्री जल का विनाशकारी अतिक्रमण हुआ है।
1990 के बाद से पानी की लवणता लगभग 70 प्रतिशत बढ़ गई है, जिससे फसलें उगाना असंभव हो गया है और झींगा और केकड़े की आबादी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। स्थानीय डब्ल्यूडब्ल्यूएफ संरक्षणवादी मुहम्मद अली अंजुम ने का कहना है कि डेल्टा डूब रहा है और सिकुड़ रहा है।
घरों को छोड़ने के अलावा नहीं बचा कोई विकल्प
बता दें कि सिंधु नदी तिब्बत से शुरू होकर कश्मीर होते हुए पाकिस्तान में बहती है। सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियां पाकिस्तान के लगभग 80% कृषि भूमि की सिंचाई करती हैं और लाखों लोगों की आजीविका का साधन हैं।
नदी के मुहाने पर बना ये डेल्टा कभी खेती करने, मछली पकड़ने और वन्यजीवों के लिए आदर्श था लेकिन लेकिन 2019 में एक सरकारी जल एजेंसी की स्टडी में पाया गया कि समुद्री जल के अतिक्रमण के कारण 16% से अधिक उपजाऊ भूमि अनुपजाऊ हो गई है। जिसके कारण लोगों के घर डूब रहे हैं और लोग घरों को छोड़कर जा रहे हैं।
डेल्टा को पुनर्स्थापित करने की हो रही कोशिश
सिंधु नदी की बात करें तो ब्रिटिश शासन के दौरान सबसे पहले नहरों और बांधों के जरिए इसके रास्ते को बदला और हाल ही में इस पर कई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू की गईं।
हालांकि इस साल की शुरुआत में किसानों के विरोध के बाद सिंधु नदी पर कई नहर परियोजनाओं को रोक दिया गया था।
सिंधु नदी बेसिन के क्षरण को रोकने के लिए, सरकार और संयुक्त राष्ट्र ने 2021 में ‘लिविंग इंडस इनिशिएटिव’ शुरू किया। एक पहल मिट्टी की लवणता को कम करके और स्थानीय कृषि एवं इकोसिस्टम की सुरक्षा करके डेल्टा को पुनर्स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
मैंग्रोव को पुनर्स्थापित करने का अभियान चला रही सिंध सरकार
सिंध सरकार मैंग्रोव पुनर्स्थापना परियोजना चला रही है, जिसका उद्देश्य खारे पानी की एंट्री को रोकने के लिए प्राकृतिक अवरोध के रूप में काम करने वाले जंगलों को पुनर्जीवित करना है। यहां तक कि समुद्र के किनारे के कुछ हिस्सों में मैंग्रोव को पुनर्स्थापित किया जा रहा है।
भारत ने सिंधु जल संधि को किया रद
इस दौरान, पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा कदम उठाते हुए पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को रद कर दिया है।
भारत ने संधि को कभी भी बहाल न करने और नदी के ऊपर बांध बनाने की बात कही है, जिससे पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी का प्रवाह कम हो जाएगा। पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्रवाई बताया है।
जलवायु कार्यकर्ता फातिमा मजीद, जो पाकिस्तान फिशरफोक फोरम के साथ काम करती हैं, उन्होंने कहा कि इन समुदायों ने अपने घरों के साथ-साथ, डेल्टा में अपनी जीवनशैली भी खो दी है। मजीद का कहना है कि हमने न केवल अपनी जमीन खोई है, बल्कि अपनी संस्कृति भी खो दी है।