गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ सभागार में गुरुवार को आयोजित ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए प्रयागराज से आए शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति की रक्षा की जा सकती है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि संस्कृत विद्यालयों को अच्छे छात्र और योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे, जिसके चलते संस्कृत की काफी दुर्दशा हो रही है। उन्होंने मंच से मुख्यमंत्री से मांग की कि वह संस्कृत विद्यालयों में हो रही नकल पर रोक लगाएं और संस्कृत विद्यालयों की भर्ती में आरक्षण को समाप्त कराएं।
कहा- मुलायम ने संस्कृत शिक्षकों को वेतन दिया, मायावती ने भी दिए थे नियुक्ति के आदेश
उनके संबाेधन के दौरान श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मौजूद लोग तब सन्न रह गए, जब उन्होंने मंच से संस्कृत के विकास का श्रेय मुलायम सिंह यादव और मायावती को दिया। कहा कि मुलायम सिंह ने संस्कृत शिक्षकों को माध्यमिक स्तर का वेतन दिया। मायावती ने भी अपने प्राचीन पद्धति से विद्यालयों में नियुक्ति के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में संस्कृत विद्यालयों में उत्तर प्रदेश में नकल रोकने की कोशिश तो की गई है। इससे सुधार तो हुआ है लेकिन अभी भी नकल हो रही है। कई जगहों पर तो पुस्तक लेकर नकल की जा रही है। अध्यापक खुद पुस्तक फाड़कर नकल करा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि संस्कृत विद्यालयों में नकल कराकर डिग्रियां दी जा रही हैं। ऐसे में संस्कृत के योग्य शिक्षक नहीं मिल पा रहे। इसके लिए उन्होंने अपनी संस्था द्वारा संचालित संस्कृत विद्यालय की चर्चा की और कहा कि उन्होंने जैसेै-तैसे शिक्षकों की भर्ती कर ली। काफी प्रयास के बाद भी उन्हें योग्य शिक्षक नहीं मिल सके। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि संस्कृत विद्यालयों में प्राचीन पद्धति से नियुक्तियां की जाएं ताकि संस्कृत का उत्त्थान हो। संस्कृत के उत्थान पर ही भारतीय संस्कृति का उत्थान टिका हुआ है।
नकल कराकर दी जा जा रही संस्कृत की डिग्रियां
उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालयों में जब नकल कराकर डिग्रियां दी जा रही हैं, तो योग्य व्यक्ति मिलेगा कहां से? हमारे मुख्ख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नकल पर रोक लगाने की कोशिश की, लेकिन अनेक बातें प्रचलित हुई और प्रसारित हुई, जिसे कहा नहीं जा सकता।
राष्ट्र के वैचारिक अधिष्ठान थे महंत दिग्विजयनाथ
इसके पूर्व ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ को श्रद्धांजलि देते हुए स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि नाथपीठ देश के और समाज के लिए साधु-संतों को मठ-मंदिरों से बाहर निकालने का कार्य किया। महंत दिग्विजयनाथ ने इसकी अगुवाई की। वह राष्ट्र के वैचारिक अधिष्ठान थे। यही वजह है इस पीठ को जितना व्यापक समर्थन मिला, उतना शायद ही किसी को मिला हो। इस जन समर्थन को पीठ ने राष्ट्र और समाज को समर्पित कर दिया। दिग्विजयनाथ को राणा प्रताप का वंशज बताते हुए स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि वह उन नायकों में से थे, जिन्होंने केवल आध्यात्मिक क्षेत्र की उन्नति में योगदान दिया बल्कि राष्ट्रीय आंदाेलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।