तपेदिक होने का खतरा उन लोगों में सबसे ज्यादा होता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। लगातार खांसी और बलगम आना, इसका एक प्रमुख लक्षण है। यह शरीर में जल तत्व की अधिकता का लक्षण है।
शरीर में जल तत्व की वृद्धि से होने वाले अन्य रोगों जैसे कफ, दमा, सर्दी-जुकाम, निमोनिया, साइनस आदि में भी यह मुद्रा कारगर है। जिस तरह सूर्य सम्पूर्ण विश्व को रोशनी और ऊष्मा देता है, ऐसे ही सूर्य मुद्रा शरीर का तापमान बढ़ाती है।
अनामिका के शीर्ष को अंगूठे के आधार पर लगाएं और अंगूठे से अनामिका पर हल्का दबाव बनाएं। शेष तीनों उंगलियां सीधी रखें। प्रातः उठने पर, रात को सोते समय और हर बार भोजन के पांच मिनट पहले तथा 15 मिनट बाद इसे 15-15 मिनट के लिए करें। उच्च रक्तचाप के रोगियों को यह मुद्रा कम समय के लिए ही करनी चाहिए। गर्मी के दिनों में यह मुद्रा अधिक देर नहीं करनी चाहिए।
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