सेना को मिलेंगी आधुनिक होवित्जर तोपें, 7000 करोड़ के सौदे को हरी झंडी

भारतीय सेना को जल्द 307 उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) मिलने जा रहे हैं। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने इनके अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है। लगभग 7000 करोड़ रुपये में इनका अधिग्रहण किया जाएगा। सरकार की इस पहल को आर्टिलरी गन निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। चीन और पाकिस्तान सीमा पर इनकी तैनाती होगी।

भारतीय सेना को जल्द 307 उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) मिलने जा रहे हैं। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने इनके अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है। लगभग 7000 करोड़ रुपये में इनका अधिग्रहण किया जाएगा। सरकार की इस पहल को आर्टिलरी गन निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। चीन और पाकिस्तान सीमा पर इन तोपों की तैनाती से सशस्त्र बलों को महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त मिलेगी।

अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं तोपें
ATAGS का निर्माण और डिजाइन स्वदेशी स्तर पर किया जा रहा है। 155 मिमी x 52 कैलिबर की ATAGS को होवित्जर तोप के नाम भी जाना जाता है। इन तोपों का प्रदर्शन स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के सामने भी हो चुका है। ATAGS पहली स्वदेशी रूप से विकसित 155 मिमी की आर्टिलरी गन है। यह तोप अत्याधुनिक तकनीक और बेहतरीन मारक क्षमता से लैस है। इससे न केवल सेना की ताकत में इजाफा होगा बल्कि स्वदेशी हथियारों का शक्ति प्रदर्शन होगा।

2013 में शुरू हुआ था TAGS प्रोजेक्ट
लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम तोपों की श्रेणी को होवित्जर कहा जाता है। ATAGS 40 किमी तक मार करने कर सकती है। बड़े कैलिबर की वजह से यह तोप दूर तक मार करने में सक्षम है। ATAGS प्रोजेक्ट की शुरुआत 2013 में किया गया था। इसका उद्देश्य सेना की पूरी तोपों को आधुनिक आर्टिलरी गनों में तब्दील करना था। ATAGS को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है और निजी कंपनियों के सहयोग से इसका निर्माण किया जाएगा।

विदेश पर निर्भरता होगी कम
आर्टिलरी गन में इस्तेमाल 65 फीसदी से अधिक पार्ट्स को घरेलू स्तर पर तैयार किया गया है। इनमें बैरल, ब्रीच मैकेनिज्म, फायरिंग, रिकॉइल सिस्टम और गोला-बारूद हैंडलिंग मैकेनिज्म शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट से न केवल भारत के रक्षा उद्योग को मजबूत मिलेगी बल्कि विदेश पर निर्भरता भी कम होगी। ATAGS भारतीय सेना में पुरानी 105 मिमी और 130 मिमी की तोपों की जगह लेंगी। इससे सेना का तोपखाना आधुनिक होगा।

रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे
स्वदेशी स्तर पर निर्माण होने के कारण ATAGS के पुर्जे की आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं आएगी। इनके रखरखाव में भी आसानी होगी। नेविगेशन सिस्टम, मजल वेलोसिटी रडार और सेंसर जैसे अहम सबसिस्टम को देश में ही डिजाइन और विकसित किया गया है। इस वजह से विदेशी तकनीक और आयात पर देश को निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। सरकार का मानना है कि ATAGS प्रोजेक्ट की वजह से विभिन्न उद्योगों में लगभग 20 लाख मानव दिवस के बराबर रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वैश्विक रक्षा बाजार में भारत की स्थिति भी पहले से मजबूत होगी।

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