लंबे समय बाद निवेश के रूप में सोने की पुरानी कहानी ने एक दिलचस्प मोड़ लिया है। एक साल पहले मैंने लिखा था, ‘2022 की शुरुआत में अमेरिका और उसके साथियों ने पश्चिमी बैंकों में जमा रूसी सेंट्रल बैंक की संपत्ति को जब्त करने का फैसला किया। रूस पर इसका जो भी असर पड़ा, वो आज मेरा विषय नहीं है। फिर भी, इसने दुनिया में सभी को ये एहसास करा दिया कि अब पश्चिमी सरकारों द्वारा नियंत्रित बैंकों में डॉलर के रूप में राष्ट्रीय भंडार रखना जोखिम भरा था। तब से, व्यावहारिक रूप से दुनिया के हर केंद्रीय बैंक ने अपने राष्ट्रीय भंडार में रखी संपत्तियों को डालर से सोने में बदलना शुरू कर दिया है। नि:संदेह, ये बदलाव बहुत तेज नहीं हो सकता क्योंकि इससे आपने जो होल्ड किया है उसकी वैल्यू ही खत्म हो जाएगी, लेकिन इस मौजूदा ट्रेंड की दिशा साफ नजर आ रही है।’
खैर अब युद्ध को दो वर्ष से ज्यादा हो गए हैं और अमेरिकियों ने रूस विरोधी प्रतिबंध व रूसी संपत्तियों को जब्त करना शुरू कर दिया है। आप इन कार्रवाईयों के असर को लेकर अपने-अपने निष्कर्ष निकाल सकते हैं और ये आज का मेरा विषय नहीं है। हालांकि, जो लोग सोने में निवेश करते हैं उनके पास रूस और अमेरिका दोनों को धन्यवाद देने की वजह है। फरवरी 2022 से जब युद्ध शुरू हुआ, सोने की कीमतें रुपये में 45 प्रतिशत और अमेरिकी डॉलर में करीब 40 प्रतिशत बढ़ी हैं।
केंद्रीय बैंक नियमित रूप से सोना खरीद रहे हैं और वे जो कर रहे हैं वो लंबे समय तक चल सकता है। उनकी हरकतें पूरी तरह से समझ में आती हैं। वे वैल्यू का ऐसा भंडार चाहते हैं जिसे अमेरिकी सरकार अचानक बर्बाद न कर सके। भले ही सोना 20 प्रतिशत गिर जाए, फिर भी ये उस शून्य से बेहतर होगा, जिस पर पश्चिमी बैंकों में रखा रूस का पैसा आ गया है।
तो हमारे अपने निवेश के लिए, आपके और मेरे लिए इसके क्या मायने है? क्या मुझे- जो हमेशा सोने पर संदेह करता रहा है-अपनी धुन बदल देनी चाहिए? मेरा हमेशा से मानना रहा है कि सोना एक पुरातन अवशेष है। एक गैर-उत्पादक संपत्ति है जो बेकार पड़ी रहती है। जबकि स्टॉक और बॉन्ड आमदनी पैदा करते हैं।
क्या ऐसा हो सकता है कि भू-राजनीतिक परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया है और इसके साथ ही संपत्ति की सुरक्षा का पूरा गणित भी बदल गया है?
ये संभव है कि सोने की कीमतों में बढ़ोतरी केवल एक अस्थायी उछाल नहीं, बल्कि दुनिया के सरकारी भंडार को प्रबंधित करने के तरीके में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिबिंद है, जिसका हम लोगों पर व्यापक असर पड़ सकता है। क्या अब समय आ गया है कि हम अपनी रणनीतियों पर दोबारा विचार करें और सोचें कि सोने का विवेकपूर्ण बंटवारा इन अप्रत्याशित वैश्विक घटनाओं के असर से बचा सकता है?
पुराने चुटकुले को दोहराते हुए कहूंगा कि इन सवालों का जवाब है- बिल्कुल, मगर शायद। एक कमोडिटी होने के अलावा, अपनी वित्तीय भूमिका में सोने के दो अलग-अलग व्यक्तित्व हैं। एक निवेश के रूप में जिसे लेकर उम्मीद है कि ये बढ़ेगा, और एक करेंसी के तौर पर भी। जबकि सोना हजारों वर्षों से एक वैश्विक, सुपरनेशनल करेंसी के तौर पर काम करता रहा। पर बीसवीं सदी के दौरान इस भूमिका में गिरावट आई और अमेरिकी डॉलर ने इसकी जगह ले ली। अब जो भू-राजनीतिक बदलाव शुरू हुआ है, उसके कारण एक तरह का उलटफेर हो सकता है।
जहां तक इस बात का सवाल है कि किसी व्यक्ति को इसके बारे में क्या करना चाहिए, इसका अब कोई साफ-स्पष्ट तर्क नहीं रह गया है कि निवेश के रूप में सोना बेकार है। सोने को अपने निवेश के एक हिस्से के तौर पर शामिल करके पोर्टफोलियो में डाइवर्सिटी लाने से, आने वाले समय में वित्तीय उथल-पुथल के खिलाफ सुरक्षा मिल सकती है।
मौजूदा रुझानों को देखते हुए, अपने निवेश का एक छोटा हिस्सा सोने में रखना, रिस्क को कम करने और वैल्यू के स्टोर के तौर पर, इसकी क्षमता को भुनाने के लिए इसे दूसरे एसेट्स के साथ बैलेंस करना अक्लमंदी हो सकती है। बदलते वैश्विक माहौल ने सोने की प्रासंगिकता को दोबारा परिभाषित किया है, जिसकी वजह से ये अनिश्चित दुनिया में स्थिरता चाहने वाले आधुनिक निवेशकों के लिए एक सोचने लायक विषय बन गया है।