हमलावर बंदरों ने ऐसा उत्पात मचाया कि इलाके में अफरातफरी मच गई। छतों पर खड़े लोगों ने कूद-कूद कर अपनी जान बचाई। करीब एक घंटे तक आवागमन बाधित हो गया और लोग घरों में कैद हो गए। कई गंभीर घायल भी हुए।
सुबह करीब आठ बजे बंदरों के दो झुंडों में झगड़ा हो गया। चीखने चिल्लाने के साथ दांत किटकिटाते बंदर छतों पर कूदने लगे। यह देख छतों पर खड़े लोगों ने उनको भगाने की कोशिश की तो बंदर अपनी लड़ाई छोड़ लोगों पर हमलावर हो गए। इससे अफरातफरी मच गई। जान बचाने के लिए लोग इधर उधर भागने लगे। कुछ युवकों ने बालकनी से गली में कूदकर जान बचाई। बंदरों ने पूरी सड़क पर कब्जा कर लिया। क्षेत्रीय लोगों के मुताबिक कम से कम 200 बंदर थे।
खुले में बंदर, पिंजरों में कैद हुए लोग
बंदरों के उत्पात की वजह से लोगों ने अपने घरों को पिंजरे जैसा बना दिया है। जीवनी मंडी, बेलनगंज, रावतपाड़ा, कचहरी घाट, काला महल, पीपलमंडी, फव्वारा, भैरो बाजार, एसएन मेडिकल कालेज, कलेक्ट्रेट सहित कई इलाके हैं जहां बंदरों से लोग परेशान है। ताजमहल व अन्य स्मारकों पर भी बंदरों के हमलों से छवि खराब हो रही।
हाईकोर्ट भी हुआ सख्त
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा में ताजमहल के आसपास बंदरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए राज्य सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों पर असंतोष जताया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार सिर्फ कागजी उपाय कर रही है और कमेटी बनाकर खानापूर्ति का प्रयास हो रहा है। कोर्ट ने नसबंदी और पुनर्वास के लिए राज्य सरकार की योजनाओं पर असंतोष जताया।
यूं बरपा है आतंक
– जिला अस्पताल में करीब चार सौ लोग बंदर-कुत्तों के हमलों के पीड़ित पहुंचते हैं।
– नवंबर 2018 में रुनकता में मां की गोद से बच्चा छीन ले गए, बच्चे की मृत्यु हो गई।
– जुलाई 2019 में माईथान के हरीशंकर गोयल की मृत्यु बंदरों के हमले में हो गई थी।
– मार्च 2020 में एक व्यक्ति की बंदरों के हमले के कारण छत से गिरकर मौत हो गई।
– अक्टूबर 2020 में भी महानगर में दो व्यक्तियों की बंदरों के हमले में मौत हो चुकी है।
10 हजार बंदरों को पकड़ने की योजना अधर में
नगर निगम ने 10 हजार बंदरों को पकड़ने का प्रस्ताव बनाया था। वाइल्ड लाइफ एसओएस कीठम के सहयोग से यह प्रस्ताव प्रधान मुख्य संरक्षक वन्य जीव (लखनऊ) को भेजा गया। वहां से अनुमति मिलने के बाद ही आगे की कार्यवाही हो सकती है। लेकिन प्रस्ताव में यह स्पष्ट नहीं होने कि बंदरों को पकड़कर किस सुरक्षित स्थान पर भेजा जाएगा या बन्ध्याकरण (स्टरलाइजेशन) कैसे होगा पर तकनीकी पेच फंस गया है। प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग अखिलेश पांडेय ने नगर निगम के अधिकारियों को स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।
2007 से कसरत
बंदरों की समस्या से जनता को निजात दिलाने के लिए नगर निगम में 2007 से प्रयास चल रहे हैं। तत्कालीन पशु चिकित्सा अधिकारी रविंद्र चौधरी के नेतृत्व में शहर में आठ हजार बंदरों की गिनती की गई थी। पशु चिकित्साधिकारी डा. बीएस वर्मा के कार्यकाल में भी कवायद हुई थी। एसएओएस से 500 बंदरों का स्टरलाइजेशन कराया गया था।