लखनऊ । हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में सिविल पुलिस व प्लाटून कमांडर में दारोगा के चार हजार से अधिक पदों पर नियुक्ति प्रकिया रद करने के एकल पीठ के आदेश पर गुरुवार को मुहर लगा दी। एकल पीठ ने गत 24 अगस्त, 2016 को इन दारोगाओं की चयन प्रकिया लिखित परीक्षा के स्तर से रद कर दी थी। कोर्ट ने कुछ दिशा-निर्देशों के साथ भर्ती प्रकिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया था।
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उक्त निर्णय के खिलाफ दायर कई विशेष अपीलें जस्टिस एपी साही व जस्टिस डीके उपाध्याय की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दी और चयनित अभ्यर्थियों को राहत देने से मना कर दिया। डिवीजन बेंच ने पहले से सुरक्षित फैसला सुनाते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया में तमाम अनियमिताएं स्पष्ट थीं। क्षैतिज आरक्षण को गलत तरीके से लागू किया गया था।
पदों के तीन गुना से अधिक अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। कुछ अभ्यर्थियों को राउंड मार्क्स दिए गए थे। अयोग्य अभ्यर्थियों को भी साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। जो प्रकिया अपनाई गई वह सेवा नियमावली के खिलाफ थी।
गौरतलब है कि मायावती सरकार ने वर्ष 2011 में 4010 पदों पर सब इंस्पेक्टर सिविल पुलिस व प्लाटून कमांडरों की भर्ती प्रकिया प्रारंभ की थी। अखिलेश सरकार ने 26 जून, 2015 को उक्त चयन प्रकिया पूरी कर ली और सफल अभ्यर्थियों को ट्रेनिंग पर भी भेज दिया था। इस बीच कुछ असफल अभ्यर्थियों ने चयन को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित करने मे क्षैतिज आरक्षण का पालन नही हुआ।
जस्टिस राजन राय की बेंच ने 24 अगस्त, 2015 को उन अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर चयन प्रकिया खारिज कर सरकार को निर्देश दिया था कि लिखित परीक्षा से भर्ती प्रकिया आगे बढ़ाकर उसे पूरा किया जाए। सिंगल जज के उक्त फैसले के खिलाफ धमेर्ंद्र कुमार व अन्य ने विशेष अपीलें दाखिल की थीं। राज्य सरकार ने भी अलग से अपील फाइल कर इस फैसले को चुनौती दी थी।