दिल्ली सरकार के श्रम विभाग के अंतर्गत आने वाले कंस्ट्रक्शन लेबर फंड में 139 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आने पर श्रम विभाग में खलबली मच गई है। मंगलवार को भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) में केस दर्ज होने पर लेबर कमिश्नर ने सभी अधिकारियों की आपात बैठक बुलाकर मंत्रणा की। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने एसीबी चीफ को राजनिवास तलब कर केस के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। प्रारंभिक जांच में एसीबी को कई अहम सुबूत मिले हैं।
एसीबी के मुताबिक, श्रम विभाग ने दिल्ली लेबर वेलफेयर बोर्ड में जिन आठ लाख लोगों को कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाला मजदूर बताकर पंजीकरण किया है उनमें से अधिकांश फर्जी हैं। एसीबी ने अब तक बोर्ड में पंजीकृत जिन छह लोगों से पूछताछ की है उनमें कोई भी मजदूर नहीं है, वे आप के कार्यकर्ता पाए गए।
श्रम विभाग ने उन्हें अवैध तरीके से फंड के लाखों रुपये देकर फायदा पहुंचाया। केस की जांच से जुड़े एसीबी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, प्रारंभिक जांच में ही पता चल गया है कि कंस्ट्रक्शन लेबर फंड के 139 करोड़ से ज्यादा रुपये कागजों में ऐसे लोगों को दे दिए गए जो वास्तव में कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं ही नहीं।
दिल्ली वेलफेयर बोर्ड में आठ लाख से ज्यादा लोगों को मजदूर बताकर पंजीकरण किया गया है। पंजीकरण सूची में दर्ज बड़ी संख्या में मजदूरों के केवल नाम का जिक्र है, उनके विस्तृत पते के बारे में जानकारी नहीं है। एसीबी का कहना है कि इससे साफ पता चलता है कि उक्त फर्जी नामों पर श्रम विभाग ने जो पैसे जारी किए, उसका गबन कर लिया गया हो।
एसीबी चीफ विशेष आयुक्त अरविंद दीप का कहना है कि सबसे पहले दिल्ली लेबर वेलफेयर बोर्ड में पंजीकृत सभी आठ लाख फॉर्मों की विस्तृत जांच की जाएगी। सभी के बयान दर्ज किए जाएंगे। इसी से घोटाले की सारी सच्चाई का पर्दाफाश हो जाएगा।
जांच के लिए एसीबी की छह टीमें बनाई गई है जो लेबर डिपार्टमेंट के हिसाब से बनाए गए दिल्ली के सभी नौ जिलों में जाकर जांच करेगी। इसके बाद श्रममंत्री गोपाल राय व लेबर कमिश्नर, ज्वाइंट लेबर कमिश्नर, एएलओ (सहायक श्रम अधिकारी), एलओ (श्रम अधिकारी) व डीएलओ (डिप्टी श्रम अधिकारी) समेत श्रम विभाग के सभी अधिकारियों से पूछताछ की जाएगी। सभी को नोटिस भेजा जाएगा। करीब 90 फीसद फर्जी पंजीकरण बोर्ड में विभिन्न लेबर यूनियन के नेताओं ने कराया है।
एसीबी ने लेबर डिपार्टमेंट से बोर्ड में पंजीकृत सभी नामों की फाइलें जल्द उपलब्ध कराने को कहा है। वर्ष 2002 से 31 मार्च 2018 तक सालाना कितने-कितने मजदूर पंजीकृत किए गए आदि करीब 15 तरह की जानकारी मांगी गई हैं।एसीबी का कहना है कि तीन तरीके से बोर्ड में मजदूरों के नाम पंजीकृत किए जाते हैं। पहला कोई मजदूर यूनियन सिफारिश करता है। दूसरा जिस साइट पर मजदूर काम करता है उसके अधिकारी सिफारिश करते हैं कि उक्त मजदूर मेट्रो या अन्य साइट पर काम करता है और तीन महीने से लगातार काम कर रहा है। तीसरा असिस्टेंट लेबर ऑफिसर प्रमाणित करते हैं कि उक्त मजदूर उक्त साइट पर काम करता है। सभी की जांच की जाएगी। काफी फॉर्म श्रम विभाग से मंगवा भी लिए गए हैं।
95 फीसद नाम फर्जी होने की आशंका
एसीबी को शक है कि जिन आठ लाख लोगों का बोर्ड में मजदूर होने की बात बताकर पंजीकरण किया गया है उनमें महज पांच फीसद ही सही पाए जाएंगे। अधिकांश उनके नाम हैं जो कहीं और मजदूरी करते हैं, अपना बिजनेस करते हैं, फैक्ट्री मालिक हैं, वाहन चलाते हैं, बुटिक चलाते हैं या आप कार्यकर्ता हैं। काफी संख्या में फर्जी नाम भी हैं, जिनका कोई पता दर्ज नहीं है।
बोर्ड भी गलत तरीके से बनाने का आरोप
शिकायतकर्ता सुखबीर शर्मा का कहना है कि बोर्ड भी गलत तरीके से बनाया गया। जो सदस्य बनाए गए वे फर्जी हैं। मंत्री खुद चेयरमैन बन गए। कंस्ट्रक्शन लेबर फंड का करोड़ों रुपया शिक्षा विभाग को दे दिया गया। फिर वहां से अपने कार्यकर्ताओं के बच्चों को दे दिया गया। जबकि उक्त रकम का इस्तेमाल मजदूरों के लिए कल्याण कार्य में किया जाना चाहिए। पंजीकृत मजदूरों को 17 तरह की सुविधाएं देने का प्रावधान है।
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