15 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बावजूद भी पिछले एक दशक मे सिंचाई और पीने बुंदेलखंड तरस रहा है. कम बुंदेलखंड के यूपी-एमपी के 13 जिलों के 10,800 गांवों में खर्च की गई है, लेकिन यूपी के हिस्से वाले बुंदेलखंड के सात जिलों के 2,486 गांवों के लोग आज भी नदी, तालाब, पोखर, हैंडपंप और कुओं के पानी को मोहताज है और ये भी अपर्याप्त है.
800 गांव ऐसे भी हैं, जो सरकारी पेपर रिकॉर्ड मे पाइप पेयजल योजनाओं से जुड़े हैं, मगर इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. पाइप लाइन से महरूम गांवों में चित्रकूटधाम मंडल के 1210 और झांसी मंडल के 1276 गांव शामिल हैं. जल निगम के इंजिनियरों के अलावा जल संस्थान और शासन भी यह मानता है कि नदियों से ही पाइप्ड पेयजल योजनाएं बुंदेलखंड में सफल हो सकती हैं.
यहां की भूजल स्तर की स्थिति ठीक न होने के कारण हैंडपंप और नलकूप आदि पर आधारित पेयजल योजनाओं का भविष्य ज्यादा टिकाऊ नहीं है. बुंदेलखंड के हर जिले में तीन-चार नदियां हैं. इन नदियों से पाइपों के जरिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जलापूर्ति की जा सकती है. बुंदेलखंड के सातों जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, ललितपुर, झांसी और उरई-जालौन की कुल आबादी 96,59,718 है. इनमें करीब 44 लाख की आबादी को पाइप्ड पेयजल योजनाओं का लाभ मिल रहा है. तकरीबन 52 लाख की आबादी इस सुविधा से वंचित है.
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