लेकिन कानून की खामियों व दोषियों के मानवाधिकार के चलते रेप हो या फिर अन्य अपराध कम नहीं हो रहे। देश की सर्वोच्च अदालत ने 5 मई 2017 को सभी दोषियों को फांसी की सजा पर मुहर लगाई थी लेकिन उस पर अमल आज तक नहीं हो पाया।
दोषी कोई न कोई तर्क देकर याचिका दायर कर देते हैं और सजा पर अमल रुक जाता है। अभी दोषियों के पास सजा रुकवाने के कई विकल्प मौजूद हैं। वे राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर सकते हैं और यदि उनकी दया याचिका खारिज होती है तो वे पुन: अदालत का भी दरवाजा खटखटा सकते हैं।
इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने 9 महीने में 80 से ज्यादा गवाह, 130 सुनवाई के बाद 13 सितंबर 2013 को मामले में आरोपी विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, मुकेश व पवन को फांसी की सजा सुनाकर फाइल हाईकोर्ट में भेज दी थी। इसी बीच पांचवें आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 13 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी।
इसके बाद हाईकोर्ट ने मात्र छह माह में ही अपील का निपटारा कर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा। हाईकोर्ट ने अपना फैसला 13 मार्च 2014 को दे दिया। दोषी मुकेश व पवन ने तुंरत यानी 15 मार्च 2014 को सर्वोच्च न्यायालय में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे दी।
वहीं दोषी विनय व अक्षय ठाकुर ने जुलाई माह में अपील दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी अपील को स्वीकार करते हुए फांसी की सजा पर रोक लगा दी। सर्वोच्च न्यायालय में करीब दो वर्ष तो सुनवाई ही शुरू नहीं हुई।
सर्वोच्च न्यायलय में 4 अप्रैल 2016 को सुनवाई शुरु हुई व 28 अप्रैल को सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय खंडपीठ का गठन हुआ। नियमित सुनवाई जनवरी 2017 से शुरू हुई।